High Court on Divorce: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक शख्स को उसकी बीवी द्वारा मानसिक क्रूरता के दावे के आधार पर तलाक की डिक्री देने के पारिवारिक न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है. न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने अपनी टिप्पणी में अवैध संबंध के झूठे आरोपों को 'अंतिम प्रकार की क्रूरता' माना और कहा, "ऐसे आरोप एक सफल वैवाहिक रिश्ते के लिए आवश्यक विश्वास को खत्म कर देते हैं."


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अदालत ने कहा, "अवैध संबंध के झूठे आरोप क्रूरता की चरम सीमा हैं. क्योंकि यह शौहर-बीवी के बीच विश्वास और भरोसे के पूरी तरह टूटने को दर्शाता है. जिसके बिना कोई भी वैवाहिक रिश्ता टिक नहीं सकता है." पीठ ने पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ बीवी की अपील को खारिज कर दिया. पारिवारिक अदालत ने पत्नी द्वारा क्रूरता के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(I-A) के तहत पति की तलाक याचिका को अनुमति दी थी.


दंपत्ति की शादी मार्च 2009 में हुई थी. उनकी एक बेटी भी है. शौहर ने दावा किया, "उसकी बीवी उस पर मुख्तलिफ प्रकार के अत्‍याचार करती है. जिसने मार्च 2016 में ससुराल छोड़ दिया था. अदालत ने कहा, "शौहर की बिना खंडन की गई गवाही इस बात की पुष्टि करती है कि वह छोटी-छोटी बातों पर झगड़ती थी और उसके साथ संवाद करने और तर्क करने की कोशिशों के बावजूद अड़ियल रुख बनाए रखती थी. अदालत ने सहवास को वैवाहिक रिश्ते के एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में देखा और इस बात पर प्रकाश डाला कि बीवी की तरफ से शौहर को बिना किसी सूचना के लंबे समय तक छोड़ने और सहवास को रोकने के कार्य महत्वपूर्ण कारक थे."


पीठ ने कहा, "हालांकि व्यक्तिगत दलीलें छोटी लग सकती हैं. लेकिन उनका मानसिक शांति को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है और यदि वे बार-बार घटित हों तो पीड़ा पैदा कर सकता है."


अदालत ने शौहर के इस दावे पर भी विचार किया कि बीवी ने बालकनी से कूदकर आत्महत्या का कोशिश की थी. जिससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा और वैवाहिक रिश्ते पर असर पड़ा. शौहर के विवाहेतर संबंधों के बीवी के आरोप के संबंध में अदालत ने ऐसे दावों का समर्थन करने वाले सबूतों की कमी की और इशारा किया कि अदालत ने इन आरोपों को वैवाहिक रिश्ते के लिए हानिकारक और 'अंतिम कील' के समान माना किया जो मजबूरी तौर पर मानसिक क्रूरता में योगदान देता है.


पीठ ने पारिवारिक अदालत के फैसले को बरकरार रखा है. जिसमें कहा गया है कि सामूहिक रूप से चर्चा किए गए उदाहरणों ने पर्याप्त मानसिक क्रूरता का प्रदर्शन किया है. जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (I-A) के तहत तलाक के लिए पति के अधिकार को उचित ठहराता है. 


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