रमजान में यहां हिंदू मुसलमानों को परोसते हैं इफ्तारी, 40 सालों से जारी है सिलसिला
Hindu Serving Iftari to Muslims: हिंदू लोग चन्नई में पिछले 40 सालों से मुसलमान रोजेदारों को इफ्तारी परोस रहे हैं. इस ट्रस्ट में कई लोग काम करते हैं. ये लोग 1200 लोगों के लिए इफ्तार बनाते हैं और परोसते हैं.
Hindu Serving Iftari to Muslims: रमजान का पाक महीना चल रहा है. इस दौरान देश दुनिया से सेहरी, इफतार और नमाज की कई बेहतरीन तस्वीरें और वाकिए सुनने को मिल रहे हैं. इसी तरह का एक वाकिया तमिलनाडु के चेन्नई से सामने आया है, जो हिंदू मुस्लिम भाईचारे की मिसाल पेश कर रहा है. चेन्नई के मायलापुर में पिछले 40 साल से हिंदू समुदाय के लोग मुसलमानों को इफ्तार परोस रहे हैं.
ये हिंदू सूफीदार ट्र्स्ट के तहत काम कर करते हैं. बीते कल ट्रस्ट के लोगों ने मायलापुर की वालाजा बड़ी मस्जिद में मुसलमानों को इफ्तार कराया. ट्रस्ट के मुताबिक वह हर दिन 1200 रोजेदारों के लिए इफ्तारी बनती है. यह इफ्तारी मायलापुर में राधाकृष्णा रोड पर मौजूद मंदिर में बनाई जाती है. यह खाना खास कर उन मुसलमानों के लिए बनाया जाता है, जो रोजे से होते हैं और शाम को अपना रोजा खोलते हैं. इफ्तार में मुसलमानों को फ्राइड राइस, सब्जी का अचार, केला, केसर दूध, खजूर और सूखे मेवे दिए जाते हैं.
मुसलमानों को इफ्तार कराने का सिलसिल 40 सालों से चला आ रहा है. बताया जाता है कि दादा रतनचंद भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त सिंध से यहां आए थे और कुछ शरणार्थियों को अपने साथ चेन्नई ले आए थे. इसके बाद उन्होंने सूफीदार ट्रस्ट बनाया. उन्होंने लोगों को सूफी संत शहंशाह बाबा नभराज साहिब की तालीम दी.
टाइम्स ऑफ इंडिया ने राम देव नाम के एक वॉलंटियर के हवाले से लिखा है कि "हमारे गुरूजी कहते हैं कि सभी ईश्वर एक हैं. हम मुसलमानों को इफ्तारी परोसने के वक्त कैप पहनते हैं और उनके मजहब का सम्मान करते हैं. हम इसलिए भी कैप पहनते हैं ताकि उनके खान में बाल और पसीना न गिरे."
मस्जिद और मंदिर के दरमियान एक रिश्ता है, वह यह कि 40 साल पहले आरकोट रॉयल फैमली ने सूफीदार मंदिर का किचन देखा था. यह किचन दादा रतनचंद ने 40 साल पहले सेट किया था. साफ-सफाई की वजह से रॉयल फैमिली ने इफ्तार के लिए इस किचन को चुना था. इसके बाद रॉयल फैमिली ने मंदिर के रसोई से मस्जिद के लिए इफ्तार बनाने के लिए करार किया था. यह सिलसिला तब से चला आ रहा है.
इफ्तार करने वाली 50 साल की जमीला कहती हैं कि उनका घर यहां से थोड़ी दूर पर है. वह यहां मस्जिद के पास काम करती हैं. वह काम करने के बाद इफ्तार करती हैं, उसके बाद अपने घर जाती हैं.