Ahmad Faraz Hindi Shayari: अहमद फ़राज़ (Ahmad Faraz) उर्दू के बड़े शायर हैं. उनका असली नाम सैयद अहमद शाह (Sayyed Ahmad Shah) था. उनकी पैदाइश 14 जनवरी 1931 को पाकिस्तान के नौशेरां शहर में हुई थी. उनकी गजलों और नज्मों के लोग दीवाने हैं. फराज कई साल पाकिस्तान से दूर यूनाइटेड किंगडम और कनाडा में रहे. अहमद फ़राज़ ने रेडियो पाकिस्तान में भी नौकरी की. 25 अगस्त 2008 को उनका निधन हो गया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल 
हार जाने का हौसला है मुझे 


चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही


अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर
चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए


दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे


आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा 
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा 


अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें


रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ


उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ


यह भी पढ़ें: Kaif Bhopali Hindi Shayari: आप ने झूठा वादा कर के, आज हमारी उम्र बढ़ा दी


न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं 
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं 


इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की 
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की 


अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो 
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए 


मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी 
तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है 


अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम 
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम 


कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे 
तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा 


कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ 
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते 


अब तिरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं 
कितनी रग़बत थी तिरे नाम से पहले पहले 


Zee Salaam Live TV: