Bath in Islam: इस्लाम में पाकी और सफाई को आधा ईमान कहा गया है. इसका मतलब यह है कि इंसान को हर वक्त पाक-साफ रहना चाहिए. ये इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि मुसलमान को हर दिन पांच वक्त की नमाज अदा करनी होती है. नमाज पढ़ने के लिए पाक होना जरूरी है. पाक-साफ होने के लिए नहाना, गुस्ल करना जरूरी होता है. अगर कोई शख्स नापाक हो गया हो तो उसे दोबारा पाक होने के लिए नहाना पड़ता है. लेकिन इस्लाम में नहाने का भी तौर-तरीका बताया गया है. नहाने के वक्त इसमें बताए हुए फर्ज को अदा करना होता है. अगर ऐसा ना किया तो पूरी जिंदगी समुंद्र में नहाने वाला शख्स पाक नहीं होगा.


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नहाते वक्त तीन फर्ज
कुल्ली करना, नाक में पानी डालना और पूरे जिस्म पर इस तरह पानी डालना कि बाल बराबर भी कोई हिस्सा सूखा न रहे. 
1. मुंह में पानी भरकर कुल्ली करनाः नहाने और पाकी हासिल के लिए जरूरी है कि नहाने वाला शख्स अपने मुंह में पानी भरकर कुल्ली करे. गार्गिल करने की तरह कंठ तक पानी पहुंचाए. हालांकि रमजान के दिनों में सिर्फ कुल्ली करे. गलाला करना जरूरी नहीं.
2. नाक में पानी डालनाः नहाते वक्त नाक में पानी डालकर इसे साफ करना चाहिए. पानी नाक के पीछे के नर्म हड्डी तक पहुंचाया जाना चाहिए.
3. नहाने का तीसरा फर्ज है, पूरे शरीर को पानी से इस तरह भिगाना और नहाना कि कोई हिस्सा सूखा न रह जाए. 
 
नहाने में कुछ सुन्नतें अदा करना भी जरूरी है.
1. नहाने से पहले मन में यह नियत करना की पाक होने के लिए नहाने जा रहे हैं.
2. दोनों हाथों को गट्टों तक धोना
3. जिस्म पर कोई गंदगी लगी है तो पहले उसे धोना/गुप्तांगों को धोना 
4. शरीर पर तीन बार पानी डालना 
5. वजू करना 


नहाने के वक्त की अन्य बातें जिसे मुस्तहब माना गया है और उसका ख्याल करने की ताकीद की गई है
 ऐसी जगह नहाना जहां किसी की नज़र न पड़े. ये औरतों और मर्दों दोनों के लिए जरूरी है. मर्द खुली जगह पर नहाए तो नाफ़ से घुटने तक का जिस्म ढका होना चाहिए. औरतों का खुली जगह पर नहाना सही नहीं माना गया है. 
नहाते वक्त किसी तरह की बातचीत या कोई दुआ नहीं पढ़नी चाहिए.
नहाने के बाद बदन पोंछना.
नहाते वक्त जरूरत से ज्यादा पानी बर्बाद न करना