Ibn E Insha Poetry: इब्ने इंशा का असली नाम शेर मोहम्मद खान है. उनकी पैदाइश 15 जून 1927 को पंजाब में हुई थी. वह उर्दू के लेखक, कॉमेडियन, यात्रा वृत्तांत लेखक और अखबार के कॉलमनिस्ट थे. उर्दू में शेर व शायरी लिखने के अलावा वह उर्दू के बेहतरीन कॉमेडियन माने गए. इब्ने इंशा की शायरी अमीर खुसरो की याद दिलाती है. नौजवान उनकी शेर व शायरी को अक्सर पसंद करते हैं. 11 जनवरी 1978 को उन्होंने लंदन में अपनी आखिरी सांस ली. 


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हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता 
हर किसी की नज़र नहीं होती 


हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे 
तू याद रहेगा हमें हाँ याद रहेगा 


एक दिन देखने को आ जाते 
ये हवस उम्र भर नहीं होती 


हम घूम चुके बस्ती बन में 
इक आस की फाँस लिए मन में 


हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी 
सैकड़ों दर थे मिरी जाँ तिरे दर से पहले 


इक साल गया इक साल नया है आने को 
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को 


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इक साल गया इक साल नया है आने को 
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को 


अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग 
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का 


वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं 
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो 


कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा 
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा 


कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर 
जंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा 


अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले 
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क़ में घर से पहले 


इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें 
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा 


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