दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि जब पति-पत्नी काम की जरूरतों की वजह से अलग-अलग रह रहे हों, तो काम की जगह पर या किसी दूसरी जगह दोस्त बनाना क्रूरता नहीं माना जा सकता. अदालत ने कहा कि अकेले रहने वाले शख्स को दोस्त रखने में सांत्वना मिल सकती है और केवल दोस्तों से बात करने को अपने जीवनसाथी की अनदेखी या क्रूर कृत्य नहीं माना जा सकता है.


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तलाक के फैसले को चुनौती दी गई


विचाराधीन मामले में एक पत्नी की अपील शामिल थी, जिसमें पति को परित्याग और क्रूरता की बुनियाद पर तलाक देने के पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. सेना अधिकारी पति ने तर्क दिया कि उसकी लगातार पोस्टिंग की वजह से पत्नी ने कभी भी उसके काम की जगह पर पर शामिल होने की रजामंदी नहीं दिखाई. दूसरी ओर पत्नी ने तर्क दिया कि पति का उसके साथ वैवाहिक संबंध बनाए रखने का कोई इरादा नहीं था, और जब वह उससे मिलने जाती थी, तब वह अपने पुरुष और महिला दोस्तों के साथ फोन पर व्यस्त रहता था.


दोस्त बनाना आम है


अदालत ने कहा कि अलग-अलग रहने की व्यवस्था को देखते हुए दोनों पक्षों के लिए दोस्त बनाना आम है. अदालत ने कहा कि बिना किसी सबूत के ऐसी दोस्ती को क्रूरता नहीं माना जा सकता. अदालत ने मूल आदेश को संशोधित किया, परित्याग के आधार पर तलाक को रद्द कर दिया, लेकिन पत्नी की तरफ क्रूरता की बुनियाद पर इसे बरकरार रखा. पत्नी के इस इल्जाम के जवाब में कि पति प्रतिदिन शराब का सेवन करता है, अदालत ने कहा कि रोज शराब का सेवन शराब की लत या बुरे चरित्र का संकेत नहीं देता है, खासकर शराब के सेवन से जुड़ी अतिरिक्त घटनाओं के बिना.


अदालत ने अवैध संबंध को खारिज किया


पत्नी ने पति पर दूसरी महिला से अवैध संबंध होने का भी इल्जाम लगाया. हालांकि, अदालत ने कहा कि उसने क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान कहा था कि वह उसके कथित व्यवहार के बावजूद उसके साथ रहने को तैयार है. अदालत ने इसे पति के कामों के प्रति सहमति माना. पीठ ने आगे कहा कि नाबालिग बच्चे को पिता से अलग कर दिया गया है और पत्नी ने उसके खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है. अदालत के मुताबिक, यह अलगाव उस पिता के प्रति अत्यधिक मानसिक क्रूरता है, जिसने लगातार बच्चे का भरण-पोषण किया था.