जातीय राजनीति के दौर में नीतीश ने `अति पिछड़ा’ और ‘महादलित’ बनाकर मजबूत की अपनी पकड़
नीतीश कुमार लगभग दो दशक से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं, वह भी उस राज्य में जहां हर उम्मीदवार और पार्टी की हार जीत का फैसला उसकी जाति करती है. ऐसे में नीतीश कुमार ने प्रदेश में बहुत कम कुर्मी वोट होने के बावजूद सभी जातियों के वोट बैंक में सेंध लगाकर अपनी पार्टी की पकड़ बना ली.
पटनाः मुल्क के हिन्दी भाषी किसी प्रांत में सबसे लम्बे अरसे तक मुख्यमंत्री रहने वाले नीतीश कुमार बिहार समेत देश की सियासत के लिए एक जरूरी शख्सियत बनते जा रहे हैं. सियासी दांव-पेंच में माहिर नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी से नाता तोड़ने से पहले आखिरी लम्हों तक अपने राज नहीं खोले. उन्होंने राजग से अलग होने के लिए अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के सर्वसम्मति का हवाला दिया और अगले ही दिन राजद के साथ मिलकर बिहार में सरकार बनाने की शपथ ले ली.
'सुशासन बाबू’ से बन गए 'पल्टू राम’
चार दशकों से लंबे अरसे के सियासी सफर में 71 साल के नीतीश कुमार पर आजतक भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, कुशासन जैसे दाग नहीं लगे हैं. वह हमेशा से ’सुशासन बाबू’, ’विकास पुरुष’ और ’मिस्टर क्लिन’ जैसे खिताब से संबोधित किए जाते रहे हैं. लेकिन अब उनके आलोचक उन पर ‘अवसरवादिता’ और वादे से पलटने का इल्जाम लगा रहे हैं.
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में हैं स्नातक
नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को पटना जिले के बाद बख्तियारपुर जिले में हुआ था. उनके वालिद स्वतंत्रता सेनानी और पेशो से एक आयुर्वेदिक डॉक्टर थे. नीतीश कुमार खुद पेशे से एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर रहे हैं. उन्होंने बिहार इंजीनियरिंग कालेज (अब एनआईटी, पटना) से पढ़ाई की है और वह छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय हो गए थे.
लोहिया और जेपी से प्रभावित होकर आए राजनीति में
नीतीश कुमार, समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से मुतासिर होकर राजनीति में शामिल हुए थे, और 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया. इसी आंदोलन में लालू प्रसाद और सुशील कुमार मोदी भी शामिल थे. नीतीश कुमार को पहली चुनावी कामयाबी 1985 के विधानसभा चुनाव में मिली, जिनमें कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की थी, लेकिन इसके बावजूद नीतीश कुमार लोकदल के टिकट पर हरनौत सीट जीतने में मामयाब रहे.
पहली बार बाढ़ सीट से बने थे सांसद
इसके पांच वर्ष बाद नीतीश कुमार तत्कालीन बाढ़ सीट से सांसद चुने गए. हालांकि, बाढ़ संसदीय सीट अब खत्म हो गई है. इसके करीब पांच साल बाद जब मंडल की लहर अपने उरोज पर थी तब नीतीश कुमार ने जार्ज फर्नाडिस के साथ मिलकर समता पार्टी की स्थापना की जो बाद में जदयू में तब्दील हो गई और आगे जा कर भाजपा के साथ केंद्र में और 2005 के बाद से बिहार के सत्ता में हिस्सेदार बनी.
सीएम के तौर पर बिहार को बनाया था अपराधमुक्त
मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार के, पहले पांच वर्षो के कार्यकाल का उनके आलोचक भी प्रशंसा करते हैं. कुमार के पहले कार्यकाल में प्रदेश में कानून और व्यवस्था के हालात में काफी सुधार देखा गया था. उससे पहले बिहार में नरसंहार, अहरण, लूट और फिरौती के की घटनाएं सुर्खियों में रहती थी. नीतीश ने राज्य से संगठित अपराध का खत्मा कर दिया.
'अति पिछड़ा’ और ‘महादलित’ का दिया नाम
मंडल आंदोलन की उपज और कुर्मी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले नीतीश कुमार ने राज्य के जातीय गणित को ध्यान में रखते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और दलितों का एक उपकोटा बनाया, जिसे ‘अति पिछड़ा’ और ‘महादलित’ का नाम दिया गया. इस कदम का बिहार की प्रभावशाली यादव और दुसाध जातियों ने विरोध किया था. नीतीश कुमार ने ‘पसमंदा’ मुस्लिम मुद्दे को भी आगे बढ़ाया.
हिन्दुत्व की विचारधारा पर लगाम
हिन्दुत्व विचारधारा से जुड़े तत्वों की अतिसक्रियता पर लगाम लगाने की नीतीश कुमार की क्षमता की वजह से ही भाजपा के साथ गठबंधन होने के बावजूद अल्पसंख्यक समुदाय में उनकी स्वीकार्यता बनी रही. अपने कार्यकाल में नीतीश कुमार ने स्कूल जाने वाली छात्राओं के लिए निःशुल्क साइकिल और पोशाक योजना चलाने जैसे कदम उठाए. इन कदमों के कारण ही वर्ष 2010 में जदयू-भाजपा गठबंधन बड़े बहुमत के साथ सत्ता में लौटा था.
मोदी से बढ़ी रंजिश तो हो गए भाजपा से अलग
यह वही वक्त था जब अटल-आडवाणी दौर का भाजपा में खात्मा हो रहा था और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कुमार की तल्खी बढ़ रही थी, जिन्हें बिहार में उन्होंने चुनाव प्रचार नहीं करने दिया था. इसके साथ ही नीतीश कुमार ने 2013 में भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ लिया था. उन्होंने हालांकि अपनी सरकार बनाए रखी क्योंकि विधानसभा में उनके पास पर्याप्त संख्या बल था. नीतीश कुमार ने वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के खराब प्रदर्शन को देखते हुए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीएम का छोड़ दिया और जीतन राम माझी को राज्य का सीएम बना दिया.
2017 में तोड़ दिसा था महागठबंधन से रिश्ता
एक साल बाद ही जीतन राम मांझी के विद्रोह के बाद राजद और कांग्रेस की हिमायत से वह फिर मुख्यमंत्री बने. उन्हें तब मोदी को चुनौती देने वाले नेता के रूप में देखा जा रहा था. वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन ने बड़ी जीत हासिल की और बिहार में सरकार बनाई. नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री बने, हालांकि दो साल बाद ही 2017 में वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापस लौट आए. उस वक्त नीतीश कुमार ने उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के इल्जामों को लेकर आपत्ति जताई थी.
इस वजह से छोड़ा भाजपा का साथ
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने केंद्र में भारी बहुमत से काबिज भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा. हालांकि जदयू को 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में 45 सीट पर ही संतोष करना पड़ा. भाजपा की आक्रामक शैली और विरोधियों को खत्म करने एवं सहयोगियों पर काबू करने के उसके तरीके से नीतीश कुमार असहज हो गए थे. इसलिए उन्होंने पूर्व सहयोगियों के साथ जाना बेहतर समझा.
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