Independence Day: सऊदी में पैदा हुआ आजादी का वो मुस्लिम नायक, जो आखिरी वक्त तक भारत-पाक बंटवारे के खिलाफ खड़ा था
Independence Day: देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों के कई नाम हैं, जिन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, बल्कि अपनी जान भी कुर्बान कर दी. आज हम आपको एक ऐसे ही मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना से आखिर तक लड़ते रहे.
Independence Day: हर साल 15 अगस्त को लोग देश की आज़ादी का जश्न मनाते हैं। 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ था. तब से हर साल 15 अगस्त को यौम-ए आज़ादी मनाया जाता है. इस दिन ख़ास तौर पर सभी लोग उन स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, जिन्होंने देश को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद कराने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. इसमें महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. राजेंद्र कुमार, सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत करोड़ों देशवासियों ने देश को आज़ाद कराने में अपना योगदान दिया था.
एक ऐसा मुसलमान जो जिन्ना का था जानी दुश्मन
देश की आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों के कई नाम हैं, जिन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, बल्कि अपनी जान भी कुर्बान कर दी. आज हम आपको एक ऐसे ही मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना से आखिर तक लड़ते रहे. हम बात कर रहे हैं, मुल्क के पहले एजुकेशन मिनिस्टर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की. जो हमेशा बंटवारे के खिलाफ़ थे.
अंतरिम सरकार में शामिल होने से किया था इनकार
जब महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, तब मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कांग्रेस के चीफ थे. उन्हें कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किले में ले जाया गया और कांग्रेस पर बैन लगा दिया गया. उन्हें 32 महीने बाद अप्रैल 1945 में रिहा किया गया. जब सितंबर 1946 में अंतरिम सरकार बनी, तो आज़ाद गांधी और नेहरू की गुजारिश के बावजूद शुरू में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए.
विभाजन पर जताया था कड़ा विरोध
महात्मा गांधी और नेहरू के बार-बार गुजारिश पर उन्होंने चार महीने बाद एजुकेशन मिनिस्टर का पदभार संभाला. जब माउंटबेटन ने पदभार संभालने के बाद भारत के विभाजन की प्रक्रिया शुरू की, तो मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने इसपर कड़ा ऐतराज जताया था. एक भारतीय होने के नाते, उन्हें देश का विभाजन एक्सेप्ट नहीं था.
दिया था ये तर्क
उस समय मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा था, "जब हिंदू बहुल मुल्क में लाखों मुसलमान जागेंगे, तो पाएंगे कि वे अपने ही मुल्क में अजनबी और विदेशी बन गए हैं. आज़ाद ने अपनी आत्मकथा में लिखा था, मैं एक पल के लिए भी पूरे हिंदूस्तान को अपनी मातृभूमि के रूप में एक्सेप्ट न करने और इसके सिर्फ एक हिस्से से संतुष्ट होने के लिए तैयार नहीं था."
जिन्ना को नहीं समझा पाए मौलाना अबुल कलाम आजाद
जब अबुल कलाम आज़ाद दूसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बने, तब तक मोहम्मद अली जिन्ना ने अलग मुस्लिम देश की मांग उठा दी थी और जिन्ना का अभियान जोड़ पकड़ चुका था. जिन्ना ने भारत के मुसलमानों को भड़काना शुरू कर दिया था कि वे गोरे शासकों की जगह हिंदू शासकों को लाने की गलती न करें. इसके बाद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को जिन्ना को यह समझाने की जिम्मेदारी गई गई कि सालों हिंदू और मुसलमान एक साथ रहे हैं. अगर आजादी के वक्त अलगाव की मांग सकारात्मक नहीं होगी.
आजाद पर भड़क गए जिन्ना
इस बात को लेकर जिन्ना, आजाद पर भड़क गए और जिन्ना आजाद को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने कहा, "मैं न तो आपसे बात करना चाहता हूँ और न ही आपसे कोई पत्र-व्यवहार करना चाहता हूँ. आप भारतीय मुसलमानों का यकीन खो चुके हैं. क्या आपको एहसास है कि कांग्रेस ने आपको एक छद्म मुस्लिम अध्यक्ष बनाया है? आप न तो मुसलमानों की अगुआई करते हैं और न ही हिंदुओं की अगुआई करते हैं. अगर आपमें थोड़ा भी स्वाभिमान है, तो आपको कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए."
सभी हो गए थे सहमत, लेकिन आजाद करते रहे विरोध
मार्च 1947 तक सरदार पटेल भारत के विभाजन के लिए सहमत हो गये थे और नेहरू भी इस सत्य को लगभग स्वीकार कर चुके थे. अब कोई चारा नहीं बचा था. महात्मा गांधी ने भी द्विराष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार किया था, लेकिन आजाद आखिर तक विभाजन के खिलाफ खड़े रहे. आखिरकार पाकिस्तान देश का जन्म 14 अगस्त 1947 को हुआ था, यानी इसी दिन पाकिस्तान एक देश बना था. इसके बाद जब भारतीय मुसलमानों के पाकिस्तान जाने का सिलसिला शुरू हुआ तो मौलाना अबुल कलाम आजाद ने उन्हें सलाह देने की कोशिश की.
उत्तर प्रदेश के मुसलमानों से की ये अपील
सैयदा सैयदेन हामिद ने अपनी किताब 'मौलाना आज़ाद, इस्लाम और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन' में लिखा है, "मौलाना ने उत्तर प्रदेश से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों से कहा, तुम अपनी मातृभूमि छोड़ रहे हो. क्या तुम जानते हो इसका क्या नतीजा होगा? तुम्हारे इस तरह जाने से भारत के मुसलमान कमज़ोर पड़ जाएँगे. एक समय आएगा जब पाकिस्तान के अलग-अलग इलाके अपनी अलग पहचान का दावा करने लगेंगे. यह मुमकीन है कि बंगाली, पंजाबी, सिंधी और बलूच खुद को अलग राष्ट्र घोषित कर दें. क्या पाकिस्तान में तुम्हारी हालात बिन बुलाए मेहमान जैसी नहीं होगी? हिंदू तुम्हारे धार्मिक प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं, लेकिन क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी कभी नहीं हो सकते हो."
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद कैसे आए भारत
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को सऊदी अरब के मक्का शहर में हुआ था. उनका असली नाम मुहीउद्दीन अहमद था. उन्होंने अपनी शुरुआती एजुकेशन अपने वालिद से ली. उसके बाद मौलाना आज़ाद ने मिस्र के एक मशहूर यूनिवर्सिटी जामिया अजहर में दाखिला लिया. मौलाना आज़ाद कई भाषाओं के जानकार थे. वह उर्दू, फ़ारसी, हिंदी, अरबी और अंग्रेजी में पारंगत थे. मौलाना आज़ाद ने सऊदी अरब छोड़कर भारत में शरण लेने का फैसला किया. जब वे भारत आए तो वे कलकत्ता में रहने लगे. कलकत्ता में रहते हुए उन्होंने पत्रकारिता और राजनीति दोनों में खुद को स्थापित करना शुरू कर दिया.