जकार्ताः इंडोनेशिया (Indonesia) की संसद ने एक बहु-प्रतीक्षित और विवादास्पद संशोधन को पास कर दिया है, जिसके तहत विवाहेतर यौन संबंध दंडनीय अपराध होगा और यह न सिर्फ देश के नागरिकों पर बल्कि देश की यात्रा करने वाले विदेशियों पर समान रूप से लागू होगा. एक संसदीय समिति ने नवंबर में इस बिल के मसौदे को आखिरी शक्ल दी थी और सांसदों ने मंगलवार को इसे सर्वसम्मति से पास कर दिया है. इसके साथ ही सरकार ने गर्भनिरोधक के इस्तेमाल और धार्मिक ईश-निंदा को भी प्रतिबंधित कर दिया है. इंडोनेशिया के छह मान्यता प्राप्त धर्मों- इस्लाम, प्रोटेस्टेंटवाद, कैथोलिक धर्म, हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और कन्फ्यूशीवाद के केंद्रीय सिद्धांतों से विचलन के लिए पांच साल की जेल की अवधि को बनाए रखा है.  इसके साथ ही नागरिकों को मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा का पालन करने वाले संगठनों से जुड़ने के लिए 10 साल की जेल की सजा और साम्यवाद फैलाने के लिए चार साल की सजा का सामना करना पड़ सकता है. 


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कुछ मामलों में दी गई है छूट 


कानून और मानवाधिकार मामलों के उप मंत्री एडवर्ड हीराईज़ के मुताबिक, संसद से पास होने के बाद नई दंड संहिता पर राष्ट्रपति के दस्तखत होना बाकी रह गया है अभी. कानून तत्काल प्रभाव से लागू नहीं होगी और इसमें अधिकतम तीन साल का वक्त लग सकता है. ‘द एसोसिएटेड प्रेस’ के पास मौजूद इस संशोधित कानून  की एक कॉपी के मुताबिक, विवाहेतर यौन संबंध का कसूरवार पाए जाने पर एक साल की जेल की सजा का प्रावधान है, लेकिन व्यभिचार का इल्जाम पति, माता-पिता या बच्चों द्वारा दर्ज की गई पुलिस शिकायत पर आधारित होनी चाहिए. 

गर्भपात कराने पर होगी जेल और जुर्माना 
नए कानून के मुताबिक, गर्भपात को एक अपराध करार दिया गया है. हालांकि इसमें वे महिलाएं जिन्हें गर्भधारण करने से उनकी जान को खतरा हो या जो दुष्कर्म के बाद गर्भवती हो गई हों उन्हें अपवाद माना गया है, लेकिन गर्भ 12 सप्ताह से कम का हो, जैसा कि 2004 के ‘मेडिकल प्रैक्टिस’ कानून में पहले से ही जिक्र किया गया है. 

अल्पसंख्यकों की जीत करार दिया 
हालांकि, कुछ समूहों ने इसे मुल्क में रहने वाले एलजीबीटीक्यू (समलैंगिक समुदाय) अल्पसंख्यकों की जीत करार दिया है. सांसद एक गहन विचार-विमर्श के बाद अंततः इस्लामी समूहों द्वारा प्रस्तावित एक अनुच्छेद को निरस्त करने पर सहमत हुए, जिसमें समलैंगिक यौन संबंधों को अवैध घोषित किया गया था. दंड संहिता में अपराध न्याय प्रणाली के तहत मृत्युदंड को बरकरार रखा गया है, जबकि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अन्य समूहों ने रद्द निरस्त करने की मांग की थी जैसा कि अन्य कई देशों ने भी किया है. 


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