Islamic Knowledge: इस्लाम में जहां औरतों को पर्दे का हुक्म दिया गया है. वहीं मर्दों को भी पर्दे का हुक्म दिया गया है. मर्दों से कहा गया है कि वह अपनी नजरें नीची रख कर चलें. कुरान में कहा गया है कि "ऐ नबी स0. मोमिन मर्दों से कहो कि वह अपनी नजरें बचा कर रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें, ये उनके लिए ज्यादा पाकीजा तरीका है, जो कुछ वह करते हैं इल्लाह इससे बाखबर रहता है." (कुरान- सूरा: अलनूर)


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मर्दों का औरत को देखना जायज नहीं
इस्लाम में कहा गया है कि एक मर्द को ये हलाल नहीं कि वह अपनी बीवी या महरम के अलावा किसी दूसरी बीवी को नजर भर कर देखे. एक बार अगर अचानक नजर पड़ जाए तो माफ है, लेकिन यह माफ नहीं कि उसने जहां पहली नजर में कशिश महसूस की वहां नजर दौड़ाए. प्रोफेट मोहम्मद ने इस तरह की दीदबाजी को आंख की बदकारी से ताबीर फरमाया है.


हर चीज का जिना है
आप स0. ने फरमाया कि आदमी अपने तमाम हवास से जिना करता है. देखना आंखों का जिना है. लगावट की बातचीत करना जबान का जिना है. आवाज से लज्जत लेना कानों का जिना है. हाथ लगाना और नाजायज मकसद के लिए चलना हाथों और पैरों का जिना है. ये सारी चीजें जब बदकारी कर चुकी होती हैं, तो शर्मगाहें या तो उसे तकमील कर देती हैं या तो तकमील करने से रह जाती हैं.


इस हालत में है इजाजत
हालांकि कुछ जगहों पर मर्दों का औरतों को देखना सही बताया गया है, जहां पर हकीकी जरूरत हो. अगर कोई शख्स किसी औरत से नकाह करना चाहता हो, इस गरज से औरतो को देखने की न सिर्फ इजाजत है, बल्कि ऐसा करना कम अज कम मुस्तहब जरूर है. एक हदीस में प्रोफेट मोहम्मद ने कहा कि "तुम में से कोई शख्स किसी औरत से निकाह करना चाहता हो तो उसे देख कर यह इतमिनान कर लेना चाहिए कि औरत में कोई ऐसी खूबी है, जो उस के साथ निकाह की तरफ रागिब करने वाली हो."


इसके अलावा कोई मर्द औरत को किसी जुर्म की तफतीश के मामले में देख सकता है. अदालत में औरत गवाह को जज देख सकता है. इलाज के लिए डॉक्टर मर्द औरत को देख सकता है.