Islamic Knowledge: इस्लाम अमन व सुकून वाला मजहब है. इस्लाम अपने करीबियों के साथ अच्छे सुलूक की हिदायत देता है. इस्लाम हर किसी के हक को बराबर देने पर जोर देता है. यहां तक कि इस्लाम कहता है कि जब आप अपने किसी करीबी के साथ खाना खा रहे हों तो उसका ध्यान रखें, ऐसा न हो कि आप उसके हिस्से का खाना भी खा जाएं.


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अरब में गरीबी थी
दरअसल, इस्लाम अरब में तब आया जब यहां बहुत सी बुराईयां थीं. यहां पर उस वक्त कई कबीले थे, जो आपस में लड़ते रहते थे. यहां एक दूसरे का हक मारना बहुत आम था. अगर यहां किसी साल सूखा पड़ जाता या बारिश नहीं होती तो अनाज की तंगी हो जाती थी. ऐसे में यहां एक दूसरे का खाना खा जाने या फिर दूसरे के हिस्से का भी खाना खा जाना आम बात थी. इसलिए इस्लाम ने इस बात पर हिदायत दी है कि अगर आप किसी के साथ खाना खा रहे हों तो अगले शख्स का ख्याल रखें. 


दूसरों के हक का ख्याल
इस तरह के वाकिए आज भी सामने आते हैं कि अगर दो लोग खाना खा रहे होते हैं तो वह अच्छी चीजों की तरफ पहले मुतवज्जा होते हैं और उसे दूसरे साथी को ध्यान दिए बिना पूरा खा जाने के फिराक में होते हैं. इस्लाम ने इससे मना किया है. इस्लाम में बताया गया है कि मिलजुलकर खाने वालों के मन में ये नहीं होना चाहिए कि वे ज्यादा से ज्यादा अपने पेट में उतारने की कोशिश करें. यह खुदगर्जी की बात होगी जो इस्लामी भाईचारे से बिलकुल मेल नहीं खाती. अगर कोई साथी खुशी-खुशी इजाजत दें तो इसमें कोई हर्ज नहीं, इस तरह खाया जा सकता है.


खाने पर हदीस
इस ताल्लुक से एक हदीस है कि "हजरत अबू मूसा अशअरी रजि0 कहते हैं कि अल्लाह के रसूल ने फरमाया: कबीला अशअर के लोग जब जिहाद के लिए निकलते हैं और उनके पास खाना थोड़ी मिकदार में होता है या मदीने में उनके यहां खाने-पीने की तंगी हो जाती है तो जो कुछ जिसके पास होता है, लाकर एक जगह इकट्ठा करते हैं, फिर मिल-बांटकर खाते हैं. नबी स0 उनकी तारीफ करते हुए कहते हैं कि ये लोग मेरे हैं, और मैं इनका हूं." (हदीस: बुखारी मुस्लिम) 


बड़ा काम
जाहिर है कि किसी के पास ज्यादा खाना होगा और किसी के पास कम, किसी के पास बहुत कम, और किसी के पास कुछ भी नहीं. ऐसी हालत में बराबर-बराबर बांटकर खाना बहुत हिम्मत की बात है.