Respect the Parents in Islam: अल्लाह ने पूरी दुनिया में इंसान को सबसे बेहतरीन मखलूक बनाया है. इंसान के दुनिया में आने का जरिया उसके मां-बाप होते हैं. इसलिए इस्लाम में अपने मां-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करने को कहा गया है. किसी भी इंसान के लिए उसके मां-बाप उसकी सबसे बड़ी दौलत हैं. कहा जाता है कि जिस तरह से इंसान अपने मां-बाप की खिदमत करेगा उसी तरह से उसके बच्चे भी करेंगे.


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कुरान में जिक्र है कि "और तुम अल्लाह ताला की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ और अपने मां-बाप के साथ अच्छा सलूक करो और अहल एहल कराबत के साथ भी." (कुरान- अन्निसा- 37)


इस्लाम में मां-बाप का दर्जा इतना ऊंचा है कि अगर अल्लाह को एक मानने और इबादत करने के बाद मां-बाप की खिदमत करने को कहा गया है. इसकी वजह यह है कि जहां इन्सान का वजूद हकीकत में अल्लाह की तरफ से है तो वहीं जाहिरी वजूद मां-बाप की वजह से है. इससे पता चलता है कि शिर्क के बाद अगर कोई गुनाह सबसे बड़ा है तो वह मां-बाप की नाफरमानी करना है. 


अल्लाह के रसूल कहते हैं कि "अल्लाह के साथ शिर्क करना और मां-बाप की नाफरमानी करना बहुत बड़ा गुनाह है." (हदीस- सहीह बुखारी)


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इस्लाम में मां-बाप की नाफरमानी के अलावा उनके साथ नाराजगी का इजहार और उन्हें झिड़कने से मना किया गया है. उनके साथ अदब के साथ नरम लहजे में बातचीत करने को कहा गया है. 


"हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद कहते हैं कि मैंने मोहम्मद स0 से पूछा कि अल्लाह को कौन सा काम सबसे ज्यादा पसंद है? आप ने फरमाया नमाज को उसके वक्त पर अदा करना. हजरत अबदुल्लाह रजि0 कहते हैं मैंने पूछा इसके बाद कौन सा अमल अल्लाह को ज्यादा पसंद है? तो आप ने फरमाया मां-बाप की फरमाबरदारी." (हदीस- सहीह बुखारी)


इस्लाम में मां के एहतराम और उनके अदब का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पैगंबर मोहम्मद ने कहा कि अगर वह नमजा अदा कर रहे होते और उन्हें उनकी मां आवाज देती तो वह नमाज छोड़ उसका जवाब देते.


पैगंबर मोहम्मद स0 ने फरमामया कि "अगर मेरी मां जिंदा होती और मैं इशा की नमाज शुरू कर चुका होता उस दौरान वह मुझे अपने हुजरे से पुकारतीं: ऐ मोहम्मद! तो खुदा की कसम! मैं नमाज छोड़ कर उनके पास हाजिर होता और उसके कदमों से लिपट जाता." (किताब- शाबुल ईमान)


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