Behaviour With Non-Muslin Mother in Islam: मजहबे इस्लाम में औरतों के साथ बहुत अच्छा सुलूक करने की ताकीद की गई है. अपने मां-बाप के साथ और भी हुस्न सुलूक करने का हुक्म दिया गया है. इस्लाम में मां का बहुत बड़ा और ऊंचा दर्जा बताया गया है. मां के कदमों तले जन्नत बताई गई है. एक हदीस के मुताबिक मां का दर्जा बाप से भी कहीं ज्यादा है. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर किसी की मां अगर मुसलमान नहीं है, तो उसके साथ कैसा सुलूक किया जाए. आइए इसके बारे में जानते हैं.


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हदीस के मुताबिक मां के साथ सुलूक


हदीस बुखारी मुस्लिम के मुताबिक "हजरत अबू बक्र र. की बेटी हजरत अस्मा (र.) कहती हैं कि हुदैबिया के जमाने में मेरी मां मेरे पास आईं. उस वक्त तक उन्होंने इस्लाम कबूल नहीं किया था. मैंने पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल! मेरी मुशरिक मां मेरे पास आई हैं, जो अब तक गैर- मुस्लिम हैं, जबकि मैं इस्लाम को मानती हूँ. वे चाहती हैं कि मैं उन्हें कुछ दूं, तो क्या मैं दे सकती हूं? आप (स.) ने फरमाया; हां उनके साथ रिश्ता बनाए रखो. उनके साथ भी वही सुलूक करो जो अपनी माँ के साथ करने का हुक्म है. तुम उन्हें जो कुछ भी चाहो दे सकती हो. उनका ख्याल रखो." उनसे रिश्ता तोड़ने का हुक्म नहीं है. उनके सारे हक़ अदा करने हैं.  


कुरान के मुताबिक मां के साथ सुलूक


कुरान में कहा गया है कि "अगर माँ तुझे शिर्क करने के लिए तुम पर दबाव डालें तो उनके दबाव में न आना, लेकिन दुनिया में उनके साथ शरीफों और मोमिनों जैसा बर्ताव करना" (सूरा- लुकमान). इस तरह से हम देख सकते हैं कि कुरान और हदीस में गैर-मुस्लिम मां के साथ अच्छा सुलूक करने की हिदायत दी गई है. यह गौरतलब है कि कुरान की वे सूरतें जो मक्के में नाजिल हुईं, उनमें मां बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने का हुक्म दिया है. इसमें मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों ही तरह के मां-बाप शामिल हैं.