नई दिल्ली: दिल्ली में शुक्रवार को आई तेज आंधी में जामा मस्जिद के मीनारों को भी नुकसान पहुंचा है. मीनार से पत्थर गिरने के बाद मस्जिद के शाही इमाम ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मसले पर खत लिखकर मस्जिद की मरम्मत कराने की गुज़ारिश की है. पीएम को भेजे खत में कहा गया है कि वे भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) को हिदायत दें कि वह निरीक्षण करे और जरूरी मरम्मत कराई जाए.


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जामा मस्जिद के शाही इमाम सयैद बुखारी ने आईएएनएस को बताया कि, इस तरह के पत्थर पहले भी गिर चुके हैं. छोटे पत्थर तो गिरते रहते हैं लेकिन चौथी बार ऐसा हुआ है कि कोई बड़ा पत्थर गिरा हो. तेज आंधी आने के बाद मीनार में नुकसान पहुंचा है.


बुखारी ने पत्थर गिरने की पीछे की वजह बताते हुए कहा कि मुगल दौर में इन पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए लोहे की पत्तियों का सहारा लिया गया है. लोहे की पत्तियां गलने से पत्थर भी गलने लगते हैं. ये पत्थर करीब 400 साल पुराने है, जिसकी वजह से पत्थरों की हालात बहुत खराब हो चुकी हैं.



बाहर से पत्थरों की सुंदरता बनी हुई है लेकिन इनमें अंदर कीड़े लग चुकें हैं. मस्जिद के कुछ पत्थर इस हाल में हैं कि प्लास्टिक की रस्सियों से उन्हें रोका गया है ताकि गिरे न. उन्होंने बताया कि, मैंने खत में इस बात पर भी जोर दिया है इंजीनियर को भेज कर मस्जिद के पत्थरों की जांच कराई जाए और देखा जाए कि मजबूती पर कितना फर्क पड़ा है.


दरअसल मस्जिद के कुछ पत्थर गिरने से अब इस बात की डर बना हुआ है कि मुस्तकबिल में और भी पत्थर गिर सकते है क्योंकि जो पत्थर हाल ही में गिरे है उनके साथ के पत्थर कमजोर पड़ गए हैं. इमाम बुखारी के मुताबिक लॉकडाउन में सभी लोग अपने घरों में नमाज पड़ रहें हैं इसलिए भीड़ होती नहीं है लेकिन इसकी समय रहते एएसआई ने मरम्मत नहीं कराई तो एक बड़ा हादसा गठित हो सकता है.


जामा मस्जिद में पहले एएसआई का दफ्तर हुआ करता था. लेकिन मस्जिद से दफ्तर हटने के बाद से अब अगर मस्जिद में कोई नुकसान होता है तो पहले एक बजट बनाया जाता है. फिर उसकी मरम्मत कराई जाती है. जानकारी के अनुसार, फिलहाल जामा मस्जिद एसएआई के अंडर में नहीं आती है लेकिन देखरेख या मरम्मत के मसले पर गुजारिश करने के बाद ही एएसआई अपनी दखलंदाजी करता है.


दरअसल मस्जिद लाल पत्थरों और संगमरमर का बनी हुई है. लाल किले से महज 500 मीटर की दूरी पर जामा मस्जिद मौजूद है जो भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है. इस मस्जिद की तामीर 1650 में शाहजहां ने शुरू करवाया था. इसे बनने में 6 साल का वक्त और 10 लाख रुपए लगे थे. बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित इस मस्जिद में उत्तर और दक्षिण द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है.


(इनपुट: आईएएनएस)