`कोई वादा वो कर जो पूरा हो, कोई सिक्का वो दे...`; जमीलुद्दीन आली के बेहतरीन शेर
Jameeluddin Aali Poetry: जमीलुद्दीन आली उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. उनका ताल्लुक भारत से है लेकिन वह बटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए थे. यहां पेश हैं उनके साबसे अच्छे शेर.
Jameeluddin Aali Poetry: मिर्जा जमीलुद्दीन अहमद उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. उन्होंने उर्दू अदब के लिए बहुत काम किया, लेकिन वह दोहा के लिए मशहूर हुए. वह 20 जनवरी 1925 को दिल्ली में पैदा हुए. बटवारे के बाद वह पाकिस्तान चले गए. यहां उन्होंने केंद्र सरकार में नौकरी शुरू कर दी. साल 1951 में उन्होंने CSS पास किया, इसके बाद वह इंकम टैक्स विभाग में कमिश्नर बन गए. उन्होंने उर्दू में गजल लिखने के साथ-साथ दोहे भी लिखे. उन्होंने पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री के लिए गाने भी लिखे. उनके काम के लिए उन्हें कई अदबी अवार्ड दिए गए. उन्हें 1989 में राष्ट्रपति पदक और 2006 में अकाली अदबियत का कमाल-ए-फ़ान पुरस्कार मिला.
ये जो बढ़ती हुई जुदाई है
शायद आग़ाज़-ए-बे-वफ़ाई है
कोई वादा वो कर जो पूरा हो
कोई सिक्का वो दे कि जारी हो
तेरे ख़याल के दीवार-ओ-दर बनाते हैं
हम अपने घर में भी तेरा ही घर बनाते हैं
तुम ऐसे कौन ख़ुदा हो कि उम्र भर तुम से
उमीद भी न रखूँ ना-उमीद भी न रहूँ
बिखेरते रहो सहरा में बीज उल्फ़त के
कि बीज ही तो उभर कर शजर बनाते हैं
हक़ीक़तों को फ़साना बना के भूल गया
मैं तेरे इश्क़ की हर चोट खा के भूल गया
एक अजीब राग है एक अजीब गुफ़्तुगू
सात सुरों की आग है आठवीं सुर की जुस्तुजू
बहुत दिनों से मुझे तेरा इंतिज़ार है आ जा
और अब तो ख़ास वही मौसम-ए-बहार है आ जा
भटके हुए आली से पूछो घर वापस कब आएगा
कब ये दर-ओ-दीवार सजेंगे कब ये चमन लहराएगा
क्या क्या रोग लगे हैं दिल को क्या क्या उन के भेद
हम सब को समझाने वाले कौन हमें समझाए
जाने क्यूँ लोगों की नज़रें तुझ तक पहुँचीं हम ने तो
बरसों ब'अद ग़ज़ल की रौ में इक मज़मून निकाला था
कुछ छोटे छोटे दुख अपने कुछ दुख अपने अज़ीज़ों के
इन से ही जीवन बनता है सो जीवन बन जाएगा
अजनबियों से धोके खाना फिर भी समझ में आता है
इस के लिए क्या कहते हो वो शख़्स तो देखा-भाला था