Hathras stampede: जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हाथरस पीड़ितों को दी आर्थिक मदद; कहा- मुसीबत धर्म पूछकर नहीं आती है
Hathras stampede: मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रतिनिधिमंडल का हाथरस में पीड़ितों से मिलकर मृतकों के परिजनों को दस हज़ार और घायलों को पााँच हज़ार रुपय की आर्थिक मदद की. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ही ऐसा पहला गैर-सरकारी संगठन है जो न सिर्फ वहां पहुंचा बल्कि पीड़ितों को आर्थिक मदद भी प्रदान की.
Hathras stampede: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के चीफ मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर JUH के एक डेलीगेशन ने हाथरस घटना के तीसरे दिन सोखना गांव पहुंचकर घटना में मारे लोगों की आर्थिक मदद की. हालांकि, JUH डेलीगेशन ने हादसे के बाद से ही हाथरस का दौरा शुरू कर दिया था.
इस घटना में एक ही घर के 4 लोगों की मौत हो गई थी. जमीयत डेलीगेशन ने इस पीड़ित परिवार से मिलकर आर्थिक मदद की और मौलाना मदनी का यह संदेश भी सुनाया. मैसेज में मौलाना ने कहा है कि इस दुख की घड़ी में हम आपके साथ हैं. हमसे जो बन सका वो कर रहे हैं. अल्लाह आपको इस दुख को सहने का धैर्य और सब्र दे. इससे पहले डेलीगेशन ने हाथरस में उन अस्पतालों का भी दौरा किया था, जहां घायलों का इलाज चल रहा है. JUH की तरफ से मृतकों के परिवार वालों के प्रति मृतक दस हज़ार और घायलों को पाँच हज़ार रुपये की आर्थिक मदद दी गई.
जमीयत मदद करने वाला पहला गैर-सरकारी संगठन
उल्लेखनीय है कि सरकार के अलावा अब तक किसी दूसरे ऑर्गेनाइजेशन या संस्था ने इस इलाके का दौरा नहीं किया. जमीयत उलेमा-ए-हिंद वाहिद ऐसा संगठन है जो न सिर्फ वहां पहुंचा बल्कि पीड़ितों को आर्थिक मदद प्रदान की. हादसे में जान गंवाने वाले या घायलों का ताल्लुक किसी एक क्षेत्र या ज़िले से नहीं है, इसलिए जमीयत ने जिला और क्षेत्र की इकाइयों को यह हिदायत दी है कि वह अपने-अपने जिले और क्षेत्र में पीड़ितों के घर जाएं, उनके दुख में शरीक हों और आर्थिक मदद पहुंचाएं.
उत्तर प्रदेश जमीअत उलमा के सदर मौलाना सैयद अशहद रशीदी इस सिलसिले में ज़िला यूनिट से लगातार कॉन्टैक्ट में हैं. वहीं, हाथरस जमीयत के अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद रमज़ान क़ासमी और सेक्रेटरी मौलाना फुरकान नदवी अपने इलाकाई सहयोगियों के साथ मिलकर पीड़ित परिवार वालों से मिल रहे हैं और घायलों की अस्पतालों में जाकर इयादत कर रहे हैं.
मौलाना मदनी ने कहा
मौलाना अरशद मदनी ने अपने एक बयान में कहा कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद पिछली एक शताब्दी से मुल्क में मुहब्बत बांटने का काम कर रही है. वह अपने राहत और वेलफेयर वर्क मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत की बुनियाद पर करती है. उन्होंने कहा कि कोई भी मुसीबत या त्रासदी यह पूछकर नहीं आती कि कौन हिंदू है, और कौन मुस्लमान है, बल्कि जब भी कोई मुसीबत आती है तो सबको अपने लपेटे में ले लेती है.
मौलाना मदनी ने किया कटाक्ष
मौलाना मदनी ने आगे तंज करते हुए कहा कि देश में ऐसे लोग भी हैं जो धर्म और कपड़ों से लोगों की पहचान करते हैं. हम ऐसे लोगों से कहना चाहते हैं कि वो आएं और मजहब और कपड़ों से लोगों की पहचान करें और देख लें कि ऐसे लोगों का काम और कैरेटक्टर क्या है.देश में अलग-अलग मजहबों और जातियों के लोग सदियों से एक साथ मिलजुल कर रहते आए हैं, लेकिन पिछ ले कुछ सालों से सांप्रदायिकता और मजहबी हिंसा को जो बढ़ावा मिला और जिस तरह नफ़रत की सियासत शुरू की गई उसने लोगों के बीच दूरियां पैदा करने का काम किया. इसके बावजूद जमीयत उलेमा-ए-हिंद अपने काम और कैरेटक्टर से इसे खत्म करने की कोशिश करती आई है.