Jammu and Kashmir: जम्मू कश्मीर में बड़ी तादाद में गुजर बकरवाल तबके के लोग रहते हैं. इन लोगों का कारोबार जानवर पालना है. यह लोग इसी से अपने खर्च पूरे करते हैं. चूंकि कश्मीर में 4 से 6 महीने सर्दी रहती है इसलिए गुजर बकरवाल तबके के लोग सर्दियां शुरू होने से पहले ही घास काट कर रख लेते हैं. इस घास को सर्दियों में जानवरों को खिलाई जाती है. इनका घास काटने का तरीका बहुत रिवायती है. इन दिनों कश्मीर के शोपियां जिले में रिवायती तरीके से घास काटी जाती है. लोग ढोल नगाड़ों के साथ नाच गा कर घास काटते हैं.


बर्फ में ढंक जाती है घास


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कश्मीर में सर्दी के मौसम में काफी बर्फ जम जाती है. बर्फ के नीचे घास ढंक जाती है. इसलिए यहां जानवरों के खाने के लिए कुछ भी नहीं मिल पाता है. ऐसे में पहले से काट कर रखी गई घास को ही जानवर खाते हैं.


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महिलाएं मिल कर बनाती हैं खाना


इन दिनों गुजर बकरवाल के कई लोग अपने जानवरों के लिए घास की कटाई कर रहे हैं. यह लोग सदियों पुरानी रिवायत के तहत घास काटते हैं. इसे लितरी के नाम से जाना जाता है. घास काटने के दौरान ये लोग ढोल नगाड़े भी बजाते हैं. घास काटने के लिए लोग झुंड में जाते हैं. एक बार में 10 से 25 लोग जमा होते हैं. यह लोग उस जगह जमा होते हैं जहां ज्यादा घास होती है. पहाड़ों पर मर्द घास काटते हैं जिसे लितरी कहा जाता है और घरों में महिलाएं लितरी के लिए खाना तैयार करती हैं. यह काम भी कई महिलाएं मिल कर करती हैं.


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बिना पैसे के काटते हैं घास


गुजर बकरवाल तबके के लोग सुबह सवेरे उस जगह पर पहुंचते हैं जहां ज्यादा घास होती है. गर्मी के मौसम में अगर पहाड़ों पर नजर दौड़ाएं तो आपको नजर आएगा कि कई जगह पर लोग दो-दो, चार-चार की टोली में घाट रहे हैं. चूंकि घास काटना थोड़ा ऊबाने वाला काम है इसलिए यहां लोग झुंड में घास काटते हैं. लितरी की खास बात यह है कि यह बिना किसी तन्खाह के की जाती है. लोग अपने और एक दूसरों के जानवरों के लिए घास काटते हैं. इससे कश्मीर में भाईचारा और मेल-मोहब्बत बढ़ती है. 


ढोल नंगाड़ों के साथ काटी जाती है घास


लितरी सुबह तकरीबन 7 बजे से लेकर शाम 7 बजे तक रहती है. लितरी में ज्यादा घास काटने वाले को इनाम दिया जाता है. लितरी के दौरान जोर-जोर से नारे लगाए जाते हैं. गाने गाए जाते हैं. यह सब कुछ अच्छे और खुशगवार माहौल में होता है इसलिए पूरा दिन धूप में भी अच्छे से गुजर जाता है.


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