Josh Malihabadi Shayari: `दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया`; पढ़ें जोश मलिहाबादी के चुनिंदा शेर
Josh Malihabadi Shayari: जोश मलिहाबादी को शायरी वरासत में मिली. उनके वालिद बशीर अहमद खां बशीर और दादा मुहम्मद अहमद खां अहमद बेहतरीन शायर थे.
Josh Malihabadi Shayari: जोश मलिहाबादी उर्दू के बेहतरीन शायर थे. उनके घर में सारी ऐश व इशरत थी लेकिन वह आला तालीम हासिल नहीं कर सके. आखिरकार उन्होंने उर्दू जबान में महारत हासिल कर ली. उन्होंने 'कलीम' पत्रिका शुरू की. कुछ दिन 'ऑल इंडिया रेडियो' में काम किया. इसके बाद सरकारी पत्रिका 'आजकल' से जुड़े. इसके बाद पाकिस्तान चले गए. उन्हें अदब और तालीम में बेहतर काम करने के लिए भारत सरकार की तरफ से पद्म भूषण अवार्ड से नवाजा गया.
कोई आया तिरी झलक देखी
कोई बोला सुनी तिरी आवाज़
उस ने वा'दा किया है आने का
रंग देखो ग़रीब ख़ाने का
हाँ आसमान अपनी बुलंदी से होशियार
अब सर उठा रहे हैं किसी आस्ताँ से हम
इस दिल में तिरे हुस्न की वो जल्वागरी है
जो देखे है कहता है कि शीशे में परी है
बिगाड़ कर बनाए जा उभार कर मिटाए जा
कि मैं तिरा चराग़ हूँ जलाए जा बुझाए जा
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का
जब उस ने वादा किया हम ने ए'तिबार किया
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
फ़ुग़ाँ कि मुझ ग़रीब को हयात का ये हुक्म है
समझ हर एक राज़ को मगर फ़रेब खाए जा
इधर तेरी मशिय्यत है उधर हिकमत रसूलों की
इलाही आदमी के बाब में क्या हुक्म होता है
इतना मानूस हूँ फ़ितरत से कली जब चटकी
झुक के मैं ने ये कहा मुझ से कुछ इरशाद किया?
हर एक काँटे पे सुर्ख़ किरनें हर इक कली में चराग़ रौशन
ख़याल में मुस्कुराने वाले तिरा तबस्सुम कहाँ नहीं है