Justice BV Nagarathna: मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुआ कहा कि मंत्रियों की अभिव्यक्ति की आज़ादी के हक पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती. अदालत ने कहा कि पाबंदी इसलिए नहीं लगाई जा सकती क्योंकि इस हक पर रोक लगाने के लिए संविधान के तहत पहले से विस्तृत आधार मौजूद हैं. जस्टिस एसए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच मंत्रियों की वाक और अभिव्यक्ति की आजादी पर अतिरिक्त पाबंदी लगाने के व्यापक प्रश्न पर एकमत रही. लेकिन जस्टिस बीवी नागरत्ना ने सहमति जताते के साथ-साथ अपनी बाकी जजों से थोड़ी अलग रखी है. 


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हाल ही में नोटबंदी के फैसले पर बाकी जजों से अलग राये रखने के बाद सुर्खियों में आने वाली जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस मुद्दे पर भी सरकार को घेरे में लेने की कोशिश की है. नागरत्ना ने कहा कि नफरत फैलाने वाला बयान इंसान को सम्मान के हक से महरूम करता है. उन्होंने कहा कि क्या सरकार को उसके मंत्रियों के अपमानजनक बयानों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. सरकार के किसी कामकाज के बारे में या सरकार को बचाने के लिए एक मंत्री के ज़रिए दिये गये बयान को सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करते हुए अप्रत्यक्ष तौर पर सरकार का बयान बताया जा सकता है. 


उन्होंने कहा, "नफरत भरे भाषण का कंटेंट चाहे जो भी हो, यह इंसान को गरिमा के हक से वंचित करता है." न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि नफरत फैलाने वाला बयान असमान समाज का निर्माण करते हुए बुनियादी हकों पर हमला करता है और अलग-अलग मामलों में, खासतौर से "हमारे ‘भारत" जैसे देश के नागरिकों पर भी हमला करता है. उन्होंने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी बहुत जरूरी हक है ताकि शहरियों को शासन के बारे में अच्छी तरह जानकारी हो.


नोटबंदी पर सरकार के खिलाफ हैं नागरत्ना:
बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 2016 में सरकार के ज़रिए की नोटबंदी के फैसला सुनाया गया है. 5 जजों की बेंच ने 4:1 के बहुमत से सरकार के फैसले को सही ठहरा दिया. यानी 5 में से 4 जजो की राये सरकार के हक में थी और एक जज ने सरकार के खिलाफ अपनी राये रखी थी. वो जज बीवी नागरत्ना ही हैं. उन्होंने नोटबंदी के फैसले को गलत बताते हुए कहा था कि इस मुद्दे को संसद से अलग नहीं रखना चाहिए था. 


जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि इतने अहम मुद्दे को संसद से अलग रखना उचित नहीं था. ये मुद्दा संसद तक जाना चाहिए था और इस पर चर्चा होनी चाहिए थी. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपने तौर पर फैसला नहीं लिया था. RBI को सिर्फ इस बारे में बताया गया था और उसकी राये मांगी गई थी. जिसे सिफारिश नहीं का जा सकता. 


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