हिंदी की कमाई खाने वाले नए कलाकार पढ़ नहीं पाते हैं हिंदी; जावेद अख्तर के इस इल्जाम से कितना सहमत है आप ?
मशहूर हिंदुस्तानी गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने एक कार्यक्रम में इस बात को लेकर चिंता जताई कि फिल्म इंडस्ट्री के नौजवान कलाकार हिंदी भाषा के संवादों को पढ़ने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं, और उन्हें रोमन स्क्रिप्ट (अंग्रेजी स्क्रिप्ट) में ही लिखने की आदत है. कार्यक्रम में बोलते हुए, अख्तर ने हिंदी-उर्दू शब्दकोष की जरूरत पर भी जोर दिया और भाषा के सांस्कृतिक विरासत के महत्व के बारे में बात की
हिन्दुस्तानी गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने कहा है कि आज की नई पीढ़ी के अभिनेता हिंदी संवाद नहीं पढ़ पाते हैं और इसलिए उन्हें और उनके लिए रोमन लिपि में ही लिखना पड़ रहा है.
एक कार्यक्रम में बोलते हुए, जावेद अख्तर ने कहा, "फिल्म इंडस्ट्री में, हम आज के ज्यादातर नए कलाकारों के लिए रोमन में (अंग्रेजी लिपि) में हिंदी संवाद लिखते हैं क्योंकि वे कुछ और नहीं पढ़ सकते हैं". 79 साल के कवि और लेखक जावेद अख्तर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित 'हिंदी और उर्दू: सियामी ट्विन्स' कार्यक्रम में भाषा पर अपने विचार रख रहे थे.इस कार्यक्रम में बोलते हुए,अख्तर ने हिंदी-उर्दू शब्दकोष की जरूरत पर भी जोर दिया और भाषा के सांस्कृतिक विरासत के महत्व के बारे में बात की.
भाषा हमारी विरासत है
जावेद अख्तर ने इसे भाषा की समृद्धि के रूप में देखा.जावेद अख्तर ने कहा कि भाषा, संस्कृति, मूल्य,और सौंदर्यशास्त्र स्वभाव में गतिशील हैं.अगर इसमें गतिशीलता नहीं रही तो भाषा मर जाएगी.अख्तर ने भाषा की तुलना एक बहती हुई नदी से करते हुए कहा कि "एक नदी बढ़ती रहेगी अगर वो दूसरी बहने वाली धाराओं को भी अपने में मिलाती रहेगी. संस्कृति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि "हम संस्कृति से क्या क्या हटाते रहेंगे? आप कितना भी कुछ हटा लें, काट-छांट करते रहे फिर एक दिन ऐसा आएगा जब कोई कहेगा कि जो बचा है वह भी बाहर से आया है. "
हिंदी के बिना उर्दू अधूरी है
जावेद अख्तर ने आम ज़िन्दगु में उर्दू और हिंदी को एक साथ लाने की जरूरत पर भी बातचीत की और इसके बाद उन्होंने हिंदुस्तानी शब्दकोश की मांग रखी.जावेद ने इसी कड़ी में आगे कहा कि हिंदी के बिना उर्दू अधूरी है. हिंदी शब्दों के बिना कोई भी उर्दू का वाक्यांश पूरा नहीं बोला जा सकता. जावेद के मुताबिक, हिंदी और उर्दू के वाक्यों के लिए नियम एक ही है,लगभग 90 प्रतिशत डिक्शनरी भी समान है.जावेद ने कहा कि उनका मानना है कि कुछ विद्वानों, लेखकों और शोधकर्ताओं को हिंदुस्तानी शब्दों की एक आम डिक्शनरी बनानी चाहिए जोकि अपने आप में बहुत समृद्ध होगी.
भाषा का धर्म से कोई लेना देना नहीं है
इस प्रोग्राम में बात करते हुए जावेद ने ये भी कहा कि भाषा एक इलाके की सांस्कृतिक विरासत है जिसका किसी धर्म या मजहब से कोई लेना देना नहीं है.भाषा को समृद्ध करने की जरूरत होती है. नौजवान नस्ल को जुबान को मजबूत करने की जरूरत है.