गे और लेस्बियन के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने क्यों किया इस्लाम का जिक्र? पढ़िए
LGBTQ के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को बहस हुई, इस दौरान इस्लाम और हिंदू धर्म का भी जिक्र किया है. जानिए आखिर क्यों?
Gay lasbian: सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों समलैंगिक विवाह की मंजूरी को लेकर मामला चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में संवैधानिक बेंच बनाने का फैसला लिया है और अब इस पर 18 अप्रैल से बहस का आगाज होगा. लेकिन सोमवार को भी इस मामले में दिलचस्प बहन देखने को मिली है. बहस के दौरान इस्लाम और हिंदू मज़हब भी जिक्र किया गया. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों बहस के दौरान इस्लाम और हिंदू धर्म का जिक्र हुआ.
दरअसल अदालत में केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता समलैंगिक विवाह के खिलाफ अपनी दलीलें रख रहे थे. इस दौरान उन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपरा और रीति-रिवाजों का भी जिक्र किया था. तुषार मेहता ने बहस के दौरान कहा कि समलैंगिक शादी को मंजूरी देने भारतीय रिवायतों और अवधारणा के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि हिंदुस्तानी परिवारों में एक महिला और पुरुष के बीच ही वैवाहिक संबंधों को माना जाता है. इसके अलावा महिला-पुरुष के ज़रिए पैदा हुई संतानों को ही परिवार का हिस्सा माना जाता है.
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इस दौरान सॉलिसिटर तुषार मेहता ने इस्लाम और हिंदू धर्म का भी जिक्र किया. इस्लाम का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस्लाम में भी शादी के लिए एक पुरुष और महिला का होना लाज़मी है. ऐसे में समलैंगिक कानून को मंजूरी देना भारतीय अवधारणा के बिल्कुल खिलाफ चला जाएगा और इस मामले पर अदालत को संजीदगी के साथ हल करने की जरूरत है. तुषार मेहता ने यह भी कहा कि अगर समलैंगिक विवाह को मंजूरी दी जाए तो यह सवाल उठता है कि गोद लिए गए बच्चे का क्या होगा?
तुषार मेहता ने समलैंगिक जोड़े जो किसी बच्चे को गोद लेगा उसका उस बच्चे की परवरिश किस तरह होगी? उस बच्चे की मानसिकता किस तरह की होगी? उन्होंने कहा कि प्यार करने की हक है यह हक संविधान देता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस तरह शादी का हक भी है. हालांकि इस दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि मैरिज एक्ट के सेक्शन 4 में शादी का मतलब सिर्फ महिला और पुरुष से नहीं बताया गया.
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