Islamic News: इस्लाम में कर्ज देने को अच्छा बताया गया है. इस्लाम में बताया गया है कि कर्ज देना किसी को भीख देने से बेहतर है. ऐसा इसलिए क्योंकि जो शख्स भीख मांग रहा होता है, उसके पास कुछ होता है, लेकिन जो शख्स कर्ज मांग रहा होता है, उसके पास कुछ नहीं होता है. अल्लाह ने जिसे भी उसकी जरूरत से ज्यादा माल दिया है, उसको चाहिए कि वह अपने से गरीब लोगों की मदद करे. मदद करने की एक सूरत यह भी हो सकती है कि जरूरतमंदों को कर्ज दिया जाए. कर्ज देना सवाब का काम है. अगर कोई शख्स वक्त पर कर्ज वापस न कर सके तो उसे थोड़ी मोहलत दे तो ये दोहरे सवाब का काम है. अगर कर्जदार कर्जा वापस न कर सके, तो उसे माफ कर देने से अल्लाह बहुत खुश होता है.


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कर्ज पर हदीस


हदीस उलमुंजिरी के मुताबिक प्रोफेट मोहम्मद (स.) ने फरमाया "हर कर्ज सदका (पुण्य) है." इसी तरह से कुरान में जिक्र है कि "तंगदस्त कर्जदार का कर्ज माफ कर दो, तो यह बेहतरीन काम है, बशर्ते तुम जानो कि इसके बदले में कितना बड़ा इनाम मिलने वाला है." (सूरा: बकरा, आयत 280)


कर्ज के बारे में अहम बातें


अगर किसी शख्स को कर्ज दिया और वह वापस नहीं कर पाया तो मोहलत देने से अल्लाह आपके साथ माफी और दरगुजर का मामला फरमाएगा.
कर्जदार को मोहलत देने से अल्लाह कर्ज देने वाले के गुनाह माफ कर देता है.
अगर कोई शख्स कर्ज चुकाने के काबिल है और वह कर्ज नहीं चुका रहा है तो यह जुल्म है, अत्याचार है.
ऐसा कर्जदार जो कर्ज चुकाने के काबिल है और टाल मटोल कर रहा है उसे समाज की नजर में गिरा देना जायज है.
इस्लाम में अच्छे तरीके से कर्ज अदा करने वाले शख्स को भला इंसान बताया गया है.
अगर किसी शख्स ने तुम्हारे साथ धोखाधड़ी की उसके साथ धोखाधड़ी नहीं, बल्कि जायज तरीके से अपना हक वसूल करना.
अगर कोई शख्स कर्ज लेकर इस दुनिया से गुजर जाता है, तो अल्लाह के यहां उसकी पकड़ होगी चाहे कितना भी नेक रहा हो.
अगर कोई शख्स कर्ज लेकर देने की साफ नियत रखता है, लेकिन उसका इंतेकाल हो गया, तो अल्लाह उसका कर्ज माफ कर देंगे, 
लेकिन कोई सख्स कर्ज लेकर देने की नीयत न रखता हो तो बुरी नीयत की वजह से अल्लाह उसे बरबाद करके रहेगा.