लखनऊ: लखनऊ में आठवी मोहर्रम के मौक़े पर इमाम हुसैन के भाई हज़रत अब्बास की याद में दरिया वाली मस्जिद से अलम ए फ़ातेह फुरात का जुलूस पूरी शानो शौकत के साथ निकाला गया. इस तारीख़ी जुलूस में अज़ादारों ने मुल्क से मोहब्बत का पैग़ाम देते हुए तिरंगा झंडा भी साथ साथ लहराया. अलम के जुलूस में बड़ी संख्या में शिया समुदाय के लोगों ने शिरकत की। जुलूस अपने मुकामी रास्तों से गुज़रा और शहर या अब्बास या अब्बास की सदाओं से गूंज गया। इस दौरान इमामबाड़ो में मजलिसों का भी सिलसिला जारी रहा.


कौन थे हजरत अब्बास


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इमाम हुसैन के भाई थे हज़रत अब्बास. हज़रत अब्बास बेहद बहादुर और शुजा थे और इमाम हुसैन के लश्कर के सरदार भी थे. उनकी बहादुरी के किस्से दूर दूर तक मशहूर थे. इतिहास में दर्ज है कि यज़ीदी फौज ने नहर पर पानी भरने गए हज़रत अब्बास के धोके से बाज़ू कलम कर दिए थे. कहा जाता है के अगर हज़रत अब्बास को जंग करने की इजाज़त मिल जाती तो मैदान ए कर्बला का नक्शा कुछ और होता.


नवासा ए रसूल हजरत इमाम हुसैन के भाई हजरत अब्बास अलमदार की शहादत मोहर्रम महीने की आठ तारीख को मनाई जाती है. मोहर्रम की इस तारीख हजरत अब्बास के नाम से जोड़ा जाता है.  हजरत अब्बास  के बारे में तारीखी किताबों में दर्ज है कि वह मुकम्मल तौर पर हजरत अली की तरह ही लगते थे और इसी तरह बहादुर भी थे. 


बताया जाता है कि जब हज़रत अब्बास को कर्बला के मैदान में शहीद किया गया तो इमाम हुसैन ने अपने भाई अब्बास से एक हाजत तलब की वो हाजत थी की एक एक बार मुझको भाई कहकर पुकार दो अब्बास. रिवायत कहती है कि जब हज़रत अब्बास ने इमाम हुसैन के जानो पर दम तोड़ा तो उस दर्दनाक मंज़र में इमाम ने कहा कि अब्बास मेरे भाई तुम्हारे मरने से आज मेरी कमर टूट गयी है. 


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