लखनऊः उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चर्चित बर्लिंगटन चौराहे (Burlington Crossing) का नाम बदलकर विश्व हिंदू परिषद (VHP) और राम मंदिर आंदोलन ( Ram Janmabhoomi movement) के अग्रणी नेता रहे मरहूम अशोक सिंघल  (Ashok Singhal) के नाम पर रख दिया गया है. सोमवार को इसका लोकार्पण किया गया. लखनऊ की महापौर संयुक्ता भाटिया, राम जन्‍म भूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय, लखनऊ के विधायक और पूर्व मंत्री आशुतोष टंडन समेत कई प्रमुख नेताओं की मौजूदगी में चौराहे के नए नाम वाली उद्घाटन पट्टिका का अनावरण किया गया. इस दौरान लोगों ने 'अशोक सिंघल-अमर रहें’ जैसे नारे लगाए.

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यह एक अच्छा और सराहनीय कामः चंपत राय 
शिलापट्ट के ऊपर भगवा पृष्ठभूमि में दिवंगत विहिप नेता की तस्वीर वाला एक बोर्ड लगाया गया है, जिस पर चौराहे के नाम के रूप में ‘अशोक सिंघल चौराहा’ दर्ज है. चंपत राय कहा कि लखनऊ नगर निगम द्वारा किया गया यह एक अच्छा और सराहनीय काम है. उन्होंने कहा कि अशोक सिंघल ( Ashok Singhal) के नाम पर चौराहे का नाम रखा जाना और इसका उद्घाटन होना बेहद खास है, क्योंकि यह दिवंगत विहिप नेता की जयंती की पूर्व संध्या पर किया गया है.

दक्षिणपंथी विचारकों के नाम पर रखे जाएंगे कई अन्य स्थानों के नाम  
नगर निगम के अफसरों ने बताया कि नगर निगम की कार्यकारी समिति की बैठक में नए नामों पर फैसला किया गया है. इसके पहले लखनऊ की महापौर संयुक्ता भाटिया ने कहा था कि इस तरह के फैसले का मकसद अंग्रेजी हुकूमत के प्रतीकों और उसकी विरासत को खत्म करना और देश की आजादी व प्रगति के लिए संघर्ष करने वाले लोगों का सम्मान करना है. इसी कड़ी में अशोक सिंघल के नाम पर बर्लिंगटन चौराहे का नाम रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है. लखनऊ नगर निगम ने निकाय चुनाव से पहले कई स्थानों का नाम बदलकर स्वतंत्रता सेनानियों और दक्षिणपंथी विचारकों के नाम पर रखने का फैसला किया है.
 


राम मंदिर आंदोलन के नेता रहे हैं अशोक सिंघल 
उल्लेखनीय है कि है अशोक सिंघल का जन्म 27 सितंबर 1926 को हुआ था और 17 नवंबर 2015 को उनका निधन हो गया था. अशोक सिंघल ने राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी. वह लंबे अरसे तक इस राम मंदिर तहरीक के प्रभारी भी रहे थे. सिंघल लगभग 20 साल से ज्यादा वक्त तक विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी सद्र रहे. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि बर्लिंगटन चौराहा नाम अंग्रेजी दासता का प्रतीक था और इसे बदलने के लिए कई संगठनों की जानिब से मांग की जा रही थी. हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव ने बताया कि अशोक सिंघल इसी चौराहे के नजदीक अपने एक दोस्त के यहां अक्सर रुकते थे और उनके नाम से इस चौराहे की इज्जत बढ़ी है. 

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