सैयद अब्बास मेहदी रिज़वी: मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी भी कहा जाता है. गांधी जी ने अंग्रेज़ों की हुकूमत से हिंदुस्तान को आज़ाद कराने की लड़ाई लड़ी और ग़रीबों के हक़ के लिए आवाज़ उठाई थी. अदमे तशद्दुद (अंहिसा) के साथ किसी भी तहरीक को पाए तकमील तक कैसे पहुंचाया जाए ये सबक़ जदीद दुनिया को महात्मा गांधी ने दिया. गांधी जी ने कहा था कि मुझे अहिंसा का उसूल इमाम हुसैन से मिला. आज पूरी दुनिया उन्हें बड़े ही इज़्ज़तो एहतेराम के साथ याद करती है.


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अमीर ख़ानदान का बेटा ग़रीबों के लिए लड़ा
मोहनदास करमचंद गांधी की पैदाइश हिंदुस्तान की रियासत गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुई थी. उनका ख़ानदान एक अमीर ख़ानदान था. मोहनदास करमचंद गांधी के वालिद करमचंद पोरबंदर रियासत के राजा के दरबार में दीवान थे. मां एक मज़हबी घरेलू ख़ातून थीं, जो अक्सर पूजा-पाठ के लिए मंदिर जाती थीं और उपवास रखा करती थीं. मां ने मोहन को हिंदू रिवायतों और समाजियात का पुख़्ता सबक़ याद कराया था. मां से ही बेटे मोहन को मज़हबी रवादारी और सादी ज़िदंगी की तालीम मिली थी.


अहिंसा की तहरीक को पूरे हिंदुस्तान में हिमायत मिली
गांधी ने मज़हबी आज़ादी की बुनियाद पर हिंदुस्तान के लिए आज़ादी मांगी. गांधी जी की अपील पर होने वाले मुज़ाहिरों को समाज के सभी तबक़ों और मज़ाबिह की हिमायत मिलने लगी.उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ 1921 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की. गांधी जी की अपील पर मुल्क के अवाम ने ब्रिटिश सामानों का बायकॉट करना शुरू कर दिया. इसके जवाब में ब्रितानी हुकूमत ने गांधी को ग़द्दारी-ए-वतन के इल्ज़ाम में गिरफ़्तार कर लिया. उन्हें दो साल तक जेल में रखा गया. 1930 में नमक तहरीक, 1931 में गोलमेज़ कॉन्फ़्रेंस, 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो तहरीक ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया.इधर हिंदुस्तानियों में आज़ादी मांग तेज़ी से बढ़ने लगी. मजबूरन अंग्रेज़ों ने हिंदुस्तान की आज़ादी की चर्चा शुरु कर दी. और बिलआख़िर हिंदुस्तान को खुली हवा में सांस लेने की आज़ादी मिली.और 15 अगस्त 1947 को मुल्क आज़ाद हो गया


"हे राम " थे गांधी जी के आख़री अल्फ़ाज़
आज़ादी तो मिल गयी लेकिन हिंदुस्तान की तक़सीम भी हो गयी.मज़हब की बिना पर पाकिस्तान की बुनियाद पड़ी. बड़ी तादाद में ख़ून ख़राबा हुआ.गांधी जी मुल्क के बंटवारे के सख़्त ख़िलाफ़ थे.इसी बीच गांधी जी कलकत्ता से दिल्ली लौट.एक दिन जब वो दिल्ली के बिड़ला हाउस में एक प्रार्थना सभा में जा रहे थे, तो उन पर हमला कर दिया गया. महात्मा गांधी को सीने में तीन गोलियां मारी गईं. 30 जनवरी 1948 को गांधी जी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया