Manipur Violence: मणिपुर में महिलाओं को नग्न घुमाने के वायरल वीडियो के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "दो महीने पहले पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से यह महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा का एकमात्र उदाहरण नहीं है." मुख्य न्यायाधीश ने यह भी सवाल किया कि पुलिस ने 14 दिनों तक क्या किया? यह देखते हुए कि एफआईआर 4 मई को दर्ज की गई थी.


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मणिपुर में जिन महिलाओं को नग्न घुमाया गया और उनके साथ यौन उत्पीड़न किया गया. उन्होंने अपनी आपबीती के वायरल वीडियो से संबंधित एक नई याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.


जीवित बचे लोगों ने 4 मई की यौन उत्पीड़न घटना से संबंधित एफआईआर के संबंध में अपनी पहचान की सुरक्षा के लिए याचिका के साथ एक अलग आवेदन दायर किया है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "यह वीडियो महिलाओं पर हमले की एकमात्र घटना नहीं है. गृह सचिव द्वारा दायर एक हलफनामा कई उदाहरणों का संकेत देता है."


उन्होंने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि 3 मई के बाद से जब कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा भड़की थी. महिलाओं पर हमले के बारे में कितनी एफआईआर दर्ज की गई हैं.


सीजेआई ने कहा, "ऐसा कभी नहीं होना चाहिए जब कोई दूसरा वीडियो सामने आए. पहले मामला दर्ज करने का निर्देश दें. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इन तीन महिलाओं के साथ न्याय हो."


सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से मामले में दर्ज एफआईआर के बारे में जानकारी देने को कहा है. इसमें पूर्वोत्तर राज्य में जातीय संघर्ष में विस्थापित हुए लोगों की जांच और पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों का भी जानकारी मांगा गया है.


याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अदालत से कहा, "वे घटना की सीबीआई जांच नहीं चाहते हैं. वे यह भी नहीं चाहते कि मामले को राज्य से बाहर स्थानांतरित किया जाए."


आगे सिब्बल ने कहा, "यह स्पष्ट है कि पुलिस उन लोगों के साथ सहयोग कर रही है जिन्होंने हिंसा को अंजाम दिया है. वे उन्हें भीड़ में ले गए. हमें उस राज्य पर क्या भरोसा है जो नागरिकों की रक्षा के लिए है? अगर पक्षपात का कोई तत्व है, तो एक स्वतंत्र एजेंसी की जरूरत है."


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