नई दिल्लीः इस्लाम में शादी को एक सोशल कॉन्ट्रैक्ट माना जाता है, यानी सनातन धर्म की तरह यहां सातों जन्मों का इसे बंधन नहीं माना जाता है. वैसे ही, यहां शादी के मामलों में अपने ही गोत्र में शादी न करने जैसा कोई बंधन नहीं है. इस्लाम में रिश्तेदारी में शादी करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. हालांकि, ऐसा करने के लिए धार्मिक तौर पर किसी को बाध्य भी नहीं किया गया है. शादी के मामले में यहां स्त्री और पुरुषों के पसंद को प्राथमिकता दी गई है. कुरान के सुरा अलनिशा में शादी को लेकर स्पष्ट संदेश दिया गया है. यहां वैसे नजदीकी रिश्तेदारों का जिक्र किया गया है, जिससे किसी भी सूरत में एक स्त्री या पुरुष की शादी नहीं हो सकती है. उसे हराम करार दिया गया है. इसके अलावा स्त्री और पुरुष किसी से भी शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं.अल-बुखारी 


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किससे शादी को दी गई है प्राथमिकता 
इस्लामिक सोसाइटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मुज़म्मिल एच. सिद्दीक़ी कहते हैं, इस्लाम आम तौर पर अपने कुंबा को बढ़ाने और मजबूत करने में यकीन रखता है और वैवाहिक संबंधों से ऐसा सदियों से होता आ रहा है. एक खानदान के लोग दूसरे खानदान से शादी के जरिए आपस में जुड़ते हैं. यहां जाति, गोत्र और कुंडली मिलाने जैसी कोई बात नहीं है, फिर भी लोग अपनी सामाजिक हैसियत के मुताबिक अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि, उम्र, शिक्षा, रूप-रंग और आदतों में एक-दूसरे के अनुकूल लोगों के बीच विवाह करते हैं. 
पैगंबर मुहम्मद साहब ने महिला या पुरुष से की शादी करने से पहले उसकी संपत्ति, उसकी पारिवारिक स्थिति, उसकी सुंदरता और उसके धर्म को पैमाना बताया था. इसके साथ ही उन्होंने लोगों से धार्मिक और चरित्रवान स्त्री और पुरुषों से विवाह करने की सलाह दी थी. उन्होंने अधिक बच्चे जनने वाली स्त्री से भी शादी की बात कही थी, जिसे उलेमा तत्कालीन अरब की परिस्थतियों से जोड़कर देखते हैं, जब किसी परिवार के सदस्यों का संख्या बल ही उसकी ताकत मानी जाती थी.  

इन रिश्तों में हराम है शादी
कुरान और हदीस के मुताबिक कुछ रिश्तों में शादी को वर्जित बताया गया है. सूरह अल-निसा 23 के मुताबिक. सर्वशक्तिमान अल्लाह ने किसी भी इंसान के लिए उसके मां-बाप, बेटी-बेटा, बहन-भाई, पिता की बहन-भाई, माँ की बहन-भाई, भाई की बेटी-बेटा, बहन की बेटी-बेटा, सैतेला बेटी या बेटा, सौतला भाई और बहन और बेटी की पत्नी से शादी करने को हराम करार दिया गया है.

परिवार के बाहर दूध के रिश्ते में भी हराम है शादी 
इस्लाम में अगर कोई बच्चा अपनी मां के दूध के अलावा किसी दूसरी महिला का दूध पीता है, तो वह महिला उसकी मां की तरह हो जाती है और फिर उसके मामले में भी सारे वही नियम लागू होते हैं, जिसका जिक्र सूरा निसा में किया गया है. दूध पिलाने वाली महिला के पुत्र या पुत्री से उस बच्चे के जवान होने पर आपस में शादी नहीं हो सकती है. वह उसका भाई या बहन हो जाता है. ऐसी दूध पिलाने वाली महिला कोई रिश्तेदार या आया भी हो सकती है.   

दो बहनें एक पुरुष से नहीं कर सकती शादी 
इस्लाम में दो बहनें एक ही पुरुष के साथ शादी के बंधन में नहीं रह सकती हैं. यह तब हो सकता है, जब बहन का देहांत हो जाए या उसका अपने पति से तलाक हो जाए. बहन के जिंदा रहते हुए और अपने पति के साथ शादी के बंधन में रहते हुए दूसरी बहन का विवाह उस शख्स से किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता है. 

दूसरे मजहब में भी जायज नहीं शादी 
इस्लाम में एक पुरुष या महिला को किसी गैर-मजहब में शादी करने से प्रतिबंधित किया गया है. एक दूसरे से निकाह में आने वाले स्त्री या पुरुषों का इस्लाम को मानना जरूरी बताया गया है. हालांकि, इस्लाम में यहां ईसाई और यहूदियों से विवाह करने की इजाजत दी गई है. लेकिन सनातन धर्म, पारसी, जैन, बौद्ध जैसे धर्मोंं में शादी की इजाजत नहीं दी गई है. इसके पीछे उलेमा का मानना है कि ईसाई और यहूदी धर्म की जो धार्मिक किताबें हैं, उसे इस्लाम भी मान्यता देता है, भले ही वर्तमान में उसकी रवायतें बदल दी गई है और फिर दोनों की धार्मिक रस्म-रिवाज और पूजा पद्धतियां भी आपस में मिलती जुलती है. हालांकि इस मसले पर मुफ्ती अब्दुररहीम कहते हैं, शादी का मामले में जितनी भी नियम कानून बनाए गए हैं, वह इसलिए हैं कि शादियां लॉन्ग लास्टिंग हो, ऐसे में जरूरी है कि एक समान महजब, समाज, सांस्कृति पृष्ठभूमि का ख्याल रखा जाए. यही वजह है कि लोग खानदान या रिश्तेदारी में शादी को तरजीह देते हैं. 

जबरन, छल-कपट से विवाह की मनाही 
इस्लाम में जबरन विवाह की अनुमति नहीं है. यहां तक कि माता-पिता को कभी भी अपने बेटे और बेटियों को उसकी मर्जी के खिलाफ किसी से शादी करने के लिए मजबूर करने से रोका गया है. इस हराम करार दिया गया है. उसी तरह किसी से जबरन, डरा-धमकाकर या फिर छल-कपट से भी शादी नहीं की जा सकती है. शादी में आपसी सहमति सबसे बड़ा आधार है.  


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