`मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है` पढ़ें अमीर मीनाई के बेहतरीन शेर
अमीर मीनाई (Amir Meenai) की तारीफ सुन कर 1852 ई. में नवाब वाजिद अली शाह ने उनको तलब किया और 200 रुपये माहाना पर अपने शहज़ादों की तालीम का काम सौंपा.
नई दिल्ली: अमीर मीनाई (Amir Meenai) 19वीं सदी में उर्दू के बेहतरीन शायर में से थे. उनकी पैदाइश एक फरवरी 1829 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुई. उन्होंने उर्दू के अलावा अरबी और फारसी में लिखा. मिर्जा गालिब, दाग दहलवी और मोहम्मद इकबाल जैसे शायर ने उन्हें एजाज से नवाजा. अमीर मीनाई ने कई फन पर हाथ आजमाया लेकिन उन्हें गजल और नात लिखने पर महारत हासिल है. अमीर मीनाई ने अपने ज़माने में और उसके बाद भी अपनी शायरी का लोहा मनवाया. महबूब से इश्क के अलावा इश्क़-ए-हक़ीक़ी और मौज मस्ती वाले शेर भी उन्होंने कसरत से लिखे हैं. अमीर मीनाई की तारीफ सुन कर 1852 ई. में नवाब वाजिद अली शाह ने उनको तलब किया और 200 रुपये माहाना पर अपने शहज़ादों की तालीम का काम सौंपा. 1956 ई. में अंग्रेज़ों ने अवध पर क़ब्ज़ा कर लिया तो ये नौकरी चली गई. अमीर मीनाई ने अपने दौर में 40 किताबें लिखीं. इनमें से कुछ नहीं भी छपीं. उन्होंने 1 फरवरी 1900 में तेलंगाना के हैदराबाद में वफात पाई.
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं
कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'
उस दर पे आबरू नहीं जाती सवाल से
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए
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गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो
आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन
मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो
न छेड़ूँगा मैं जैसी चाहे तुम मुझ से क़सम ले लो
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