ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में पाकिस्तान, पिघलते ग्लेशियरों से सैंकड़ों गांवों के डूबने का खतरा
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघल रहे ग्लेशियरों ने पाकिस्तान के पहाड़ी इलाके में एक गाँव पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है. ग्लेशियर की बर्फ पिघलने से कई अस्थिर झीलों के निर्माण हो रहे हैं जो, इन गांवों का भविष्य खतरे में डाल रहे हैं.
ISLAMABAD: पाकिस्तान के पहाड़ी इलकों में स्थित गाँवों को ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघलते ग्लेशियरों से आने वाले खतरे का सामना करना पड़ रहा है. पाकिस्तान 7,000 से भी ज्यादा ग्लेशियरों का घर है, जो ध्रुवों के बाहर ज़मीन पर किसी भी अन्य ग्लेशियर से ज्यादा है. ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े बढ़ते वैश्विक तापमान की वजह से ग्लेशियर बेहद तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे हजारों हिमनद झीलें बन रही हैं. और जब ये हिमनदी झीलें भर जाती हैं या उनके किनारे ख़राब हो जाते हैं, तो वे फट जाते हैं, जिससे बेहद ही घातक बाढ़ आने की सम्भावना होती है. यह बड़ी बड़ी इमारतों को और भारी पुलों को बहाने की ताकत रखती हैं. अंतरराष्ट्रीय सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय के ग्लेशियरों को बर्फ की 75 प्रतिशत हानि हो रही है.
क्या है तारिक जमील का मिशन?
अपने गाँव के लोगों को ऐसे खतरे से बचने और पहाड़ी से गाँव की तरफ पैदल यात्रा करने वाले यात्रियों को अपडेट देने के लिए हुंजा घाटी में रहेने वाले 51वर्षीय तारिक जमील ने अपनी एक रिपोर्ट में हुंजा घाटी से होकर गुजरने वाले ग्लेशियर की पिघलती बर्फ की गति को माप कर उसकी तस्वीरें शेयर की है. तारिक जमील ने हसनाबाद में अपने समुदाय के 200 परिवारों को अपने गांव और जीवन शैली के भविष्य को बचाने के लिए एकजुट किया है, जो ग्लेशियर की बर्फ पिघलने से बनी अस्थिर झीलों से खतरे में है. जमील का कहना है कि उन्होंने पहाड़ो में जगह-जगह सेंसर स्थापित करने की पहल की है, और जैसे ही सभी सेंसर स्थापित हो जायेंगे. गांव के प्रतिनिधि अपने मोबाइल के माध्यम से डेटा की निगरानी कर सकेंगे और आने वाले खतरे को पहले ही भांप लेंगे और उससे बचने के लिए जो महत्वपूर्ण कदम उठाये जा सकते हैं, वो सही समय रहेते उठा लिए जायेंगे.
क्या कदम उठा रही है सरकार?
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) II परियोजना के अंतर्गत, हसनाबाद संयुक्त राष्ट्र समर्थित हो रहा है, जो पिघलते ग्लेशियरों के नीचे के समुदायों को सहायता प्रदान करने का मकसद रखता है. क्लाइमेट चेंज के प्रभावों से सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों का कहना है कि हिमनद झील की बाढ़ से निपटने के लिए तत्काल समर्थन की ज़रुरत है. इतना ही नही इसे कम करने के लिए पाकिस्तान ने ग्रीन क्लाइमेट फंड से अनुकूलन फंड हासिल करने में सफलता प्राप्त की है, जो पेरिस समझौते के अधीन है. हालांकि, अन्य देशों के मुकाबले में पाकिस्तान को इस दिशा में और बढ़त हासिल करने की ज़रुरत है, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ती हुई बाढ़ से निपटने के लिए उन्हें और भी बड़ी आवश्यकता है. पाकिस्तान की तुलना में भूटान जैसे देशों ने ग्लेशियल झील की बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए अन्य वित्तपोषकों के साथ काम किया है. 2017 से, इस्लामाबाद और यूएनडीपी के प्रशासन के तहत मौसम केंद्रों के साथ-साथ वर्षा, जल निर्वहन और नदी और झील के जल स्तर को मापने वाले सेंसर स्थापित किए गए हैं. जीएलओएफ II ने चेतावनियां संप्रेषित करने के लिए गांवों में स्पीकर और बाढ़ के पानी को धीमा करने वाले पत्थर और तार अवरोधक जैसे बुनियादी ढांचे भी तैनात किए हैं. पाकिस्तान ग्लेशियल झील की बाढ़ से दुनिया के सबसे अधिक जोखिम वाले देशों में से एक है, जहां 800,000 लोग ग्लेशियर के 15 किमी (9.3 मील) के दायरे में रहते हैं, इसे में बाड़ के एस खतरे से निपटने के लिए सरकार को और तेज़ी से काम करने की आवश्यकता है.