Muharram: मुहर्रम गम और मातम का महीना है. यह इस्लामिक साल का पहला महीना है. इस्लामिक धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम के 10वीं तारीख को कर्बला के मैदान में जंग में शहीद हो गए थे. मुहर्रम महीने का दसवां दिन अशूरा होता है. इसी दिन ताजिया निकालकर मुहर्रम मनाया जाता है. मुहर्रम के जुलूस में हिंदू युवक भी शामिल होते हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

लखनऊ के बसीर गंज में धानुक कपड़ा कारोबारी रजनीश मुहर्रम मनाते हैं. धानुक परिवार में दशको से ताजिया रखी जाती है. धानुक कपड़ा कारोबारी रजनीश घर में मोहर्रम के मौके पर अजादार और मातमदार दोनों आते हैं. धानुक ने कहा "हमारे दादा के दादा गयादीन धानुक ने 143 साल पहले बेटे की चाहत में पहली बार ताजिया रखी थी. वह पूरे लखनऊ में हिंदू बिरादरी के पहले ऐसे व्यक्ति थे. जिन्होंने ताजिया उठाई थी."


आगे रजनीश कहा, "मेरे तीन भाई पंकज, मनीष, आशीष और एक बहन नंदनी है. बहन भी मुहर्रम के मौके पर घर आ जाती है. वैसे मेरे यहा लंबे समय से मुहर्रम में ताजिया रखी जा रही है. लेकिन पिता ने इसकी बढ़ोतरी करके सभी हिंदू ताजियादारी को अपने साथ जोड़ा और हिंदू ताजिया दार सेवक संघ बनाया किस्मों खिलाफ इमामबाड़े में शामिल होते हैं."


हिंदू होते हुए भी ताजिया रखने की परंपरा पर एक मीडिया से बात करते हुए धानुक कपड़ा कारोबारी रजनीश कहते हैं  कि "सबकी अपनी मान्यता है। लोग अपनी मन्नत मांगते जो पूरी होती तो फिर आते हैं. जब से ताजिया रख रहे हैं. तब से आज तक कोई दिक्कत नहीं हुई. हिंदू-मुस्लिम दोनों अजादार शामिल होते हैं. हमारी जो गंगा-जमुनी तहजीब है, इसकी वजह से कभी लखनऊ में दंगे नहीं हुए. जो अच्छी शक्तियां होती हैं. वहां कभी गलत नहीं होता है."


Zee Salaam