नई दिल्लीः वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी (Mukul Rohatgi) ने भारत का अगला अटॉर्नी जनरल (Attorney General) बनने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है.  रोहतगी ने इतवार को कहा कि उनके फैसले के पीछे कोई खास वजह नहीं है. केंद्र सरकार ने के.के. वेणुगोपाल (KK Venugopal 91) की जगह लेने के लिए इस महीने की शुरुआत में रोहतगी (Mukul Rohatgi) को अटॉर्नी जनरल पद की पेशकश की थी. वेणुगोपाल का कार्यकाल 30 सितंबर को समाप्त हो रहा है. मुकुल रोहतगी जून 2014 से जून 2017 तक अटॉर्नी जनरल थे. उनके बाद केके वेणुगोपाल को जुलाई 2017 में इस पद पर नियुक्त किया गया था.


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रोहतगी सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं
67 वर्षीय मुकुल रोहतगी को केके वेणुगोपाल की जगह भारत के चौदहवें अटॉर्नी जनरल के रूप में नियुक्त किया जाना था. अगर रोहतगी ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता, तो जून 2014 और जून 2017 के बीच पहली बार पद पर रहने के बाद, उनका एजी के रूप में यह दूसरा कार्यकाल होता. मुकुल रोहतगी भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं.

वेणुगोपाल 30 को हो रहे हैं सेवानिवृत 
इससे पहले, वरिष्ठ वकील और वर्तमान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला देते हुए 30 सितंबर के बाद शीर्ष कानून अधिकारी के पद पर बने रहने की अनिच्छा व्यक्त की थी. संवैधानिक कानून विशेषज्ञ के रूप में व्यापक रूप से सम्मानित, वेणुगोपाल को तीन साल के कार्यकाल के बाद सेवा विस्तार दिया गया था. इस साल जून में केंद्र ने वेणुगोपाल का कार्यकाल तीन महीने और बढ़ा दिया था. इसके बाद भी सरकार ने उनसे तीन महीने और काम करने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. 

ये काम करता है महान्यायवादी 
संविधान के अनुच्छेद 76 के मुताबिक, राष्ट्रपति भारत के लिए एक महान्यायवादी को नियुक्त करेगा, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने की योग्यता हो. अटॉर्नी जनरल भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार होता है. अटॉर्नी जनरल सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार का पक्ष रखता है. एजी को देश की सभी अदालतों में सुनवाई का अधिकार भी प्राप्त है.



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