नई दिल्लीः भारतीय नौसेना को शुक्रवार को एक नया ध्वज मिल गया और इसके साथ ही इसने सदियों पुरानी अपनी औपनिवेशक पहचान को हमेशा के लिए त्याग दिया. ब्रिटश शासन से लेकर गणराज्य के प्रतीक तक यह झंडा सदियों में विकसित होता हुआ आज के मौजूदा हालत में पहुंचा है. गहरे समुद्र में यह ध्वज एक विशेष डिजाइन वाला झंडा होता है, जो जहाजों या नौसैनिक की पहचान और राष्ट्रीयता का पता बताता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कोच्चि में भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत ‘आईएनएस विक्रांत’ के जलावतरण समारोह में नए ध्वज का भी अनावरण किया.
प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय नौसेना के नए निशान (ध्वज) को छत्रपति शिवाजी महाराज को समर्पित करते हुए कहा, ‘‘छत्रपति शिवाजी से प्रेरित नौसेना का नया झंडा आज से समुद्र और आसमान में लहराएगा.’’ 

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ध्वज पर पहले थी ’क्रॉस ऑफ सेंट जॉर्ज’ की निशानी 
नौसेना के नए ध्वज में क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर लाल धारियों को हटा दिया गया है, जो पहले ‘क्रॉस ऑफ सेंट जॉर्ज’ की निशानी थी. यह  औपनिवेशिक युग की याद दिलाता था. अब इसके फ्लाई क्षेत्र में जुड़वां सुनहरी सीमाओं के साथ एक अष्टकोणीय आकार शामिल किया गया है, जो मराठा शासक की मुहर से प्रेरित है. नौसेना द्वारा जारी एक वीडियो के मुताबिक, नीले अष्टकोणीय आकार में एक लंगर के ऊपर राष्ट्रीय प्रतीक को शामिल किया गया है, जो दृढ़ता को दर्शाता है. यह नौसेना के आदर्श वाक्य ’सम नो वरुणः’ के साथ एक ढाल पर लगाया गया है, जिसका अर्थ है, ‘हमारे लिए शुभ हो ओह वरुण’.’’ अष्टकोणीय आकार आठ दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है जो भारतीय नौसेना की बहु-दिशात्मक पहुंच और बहु-दिशात्मक परिचालन क्षमता को दर्शाता है.


ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन से ध्वज में हो रहा था बदलाव 
नौसेना के झंडे में बदलाव ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन और फिर 1857 के विद्रोह के बाद शासन के सीधे ब्रिटिश राजपरिवार के अधीन जाने और भारत के 1947 में स्वतंत्रता हासिल करने और तीन साल बाद गणतंत्र बनने तक का इतिहास है. इन सदियों में नौसैनिक बलों का ध्वज समय-समय पर बदलता रहा. नेवल डॉकयार्ड मुंबई में विरासत दीर्घा में एक पैनल पर प्रदर्शित जानकारी के मुताबिक, भारत में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1612 में सूरत में अपनी गतिविधियों की शुरुआत की और उसके जहाजों को माननीय ईस्ट इंडिया कंपनी के मरीन के रूप में जाना गया. इसने कैंटन में सेंट जॉर्ज क्रॉस के साथ धारीदार ध्वज अपनाया था.

बॉम्बे मरीन का नाम बदलकर ‘हर मेजेस्टीज इंडियन नेवी’ कर दिया
सूरत से बंबई में गतिविधियों के स्थानांतरण के साथ, बॉम्बे मरीन का गठन 1686 में किया गया था. साल 1707 में, ब्रिटिश संघ के ध्वज से कैंटन में सेंट जॉर्ज क्रॉस को बदल दिया गया, और 1801 में ब्रिटिश ध्वज को विकर्ण के साथ लाल धारियों को शामिल करने के लिए संशोधित किया गया था. साल 1830 में, बॉम्बे मरीन का नाम बदलकर ‘हर मेजेस्टीज इंडियन नेवी’ कर दिया गया. वक्त के साथ नौसेना की ताकत बढ़ती गई और अगले कुछ दशकों में इसके नामकरण में कई बदलाव हुए. 1863 से 1877 तक इसका नाम ‘बॉम्बे मरीन’ रहा और इसके बाद इसका नाम ‘हर मेजेस्टीज इंडियन मरीन’ कर दिया गया.

1892 में ‘रॉयल इंडियन मरीन’ नाम कर दिया गया
विभिन्न मुहिम के दौरान दी गई सेवाओं को मान्यता देते हुए इसका नाम 1892 में ‘रॉयल इंडियन मरीन’ कर दिया गया. उस वक्त तक इसमें 50 से ज्यादा जहाज शामिल थे. साल 934 में ‘रॉयल इंडियन मरीन’ को ‘रॉयल इंडियन नेवी’ नाम दिया गया और इसकी सेवाओं को मान्यता देते हुए इसे 1935 में ‘किंग्स कलर’ के तौर पर पेश किया गया. साल 1947 में भारत के विभाजन के साथ, स्वतंत्रता के बाद, रॉयल इंडियन नेवी को रॉयल इंडियन नेवी और रॉयल पाकिस्तान नेवी में बांट दिया गया.

1950 को भारतीय नौसेना रखा गया नाम 
26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र बनने के साथ, उपसर्ग ’रॉयल’ को हटा दिया गया और इसे भारतीय नौसेना (इंडियन नेवी) कर दिया गया. छब्बीस जनवरी 1950 से 2001 तक, भारतीय नौसेना ने ब्रिटिश नौसैन्य ध्वज के एक संशोधित संस्करण का उपयोग किया, और कैंटन में यूनियन जैक को भारतीय तिरंगे से बदल दिया गया. 15 अगस्त, 2001 से, इस ध्वज को भारतीय नौसेना के क्रेस्ट वाले एक सफेद ध्वज से बदल दिया गया. यह भारत के औपनिवेशिक अतीत को प्रतिबिंबित करता था और यह 2004 तक बना रहा. साल 2004 के बाद से, क्रॉस के केंद्र में भारत के राष्ट्रीय प्रतीक को जोड़ने के साथ ही ध्वज को सेंट जॉर्ज क्रॉस डिज़ाइन में वापस बदल दिया गया, और 2014 में प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में राष्ट्रीय आदर्श वाक्य - सत्यमेव जयते - को नीचे जोड़ा गया और यह दो सितंबर, 2022 को नए ध्वज को अपनाने तक उपयोग में रहा.


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