आखिर अलीगढ़ में क्यों हुई मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना? यह किताब देती है इसका जवाब
लेखिका हुमा खलील ने अपनी कॉफी टेबल बुक ‘द एल्लुर ऑफ अलीगढ़ः ए पोएटिक जर्नी इनटू यूनिवर्सिटी सिटी’ में शहर और विश्वविद्यालय के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की है.
नई दिल्लीः सर सैयद अहमद खान ने मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए आखिरकार अलीगढ़ को ही क्यों चुना, किसी और शहर को क्यों नहीं, इस सवाल का जवाब एक नई किताब में तर्कों और तथ्यों की बुनियाद पर देने की कोशिश की गई है. इस्लामिक शिक्षाविद और सुधारक खान ने तमाम जगहों की खाक छानने के बाद अलीगढ़ को शायद वहां की ‘आब-ओ-हवा’ के कारण चुना और वहां विश्वविद्यालय की स्थापना की जो आगे चलकर प्रतिष्ठित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) बन गया.
लेखिका हुमा खलील ने अपनी कॉफी टेबल बुक ‘द एल्लुर ऑफ अलीगढ़ः ए पोएटिक जर्नी इनटू यूनिवर्सिटी सिटी’ में शहर और विश्वविद्यालय के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की है. इस किताब का प्रकाशन हेय हाउन ने किया है. खान ने 24 मई, 1875 को मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल स्कूल की स्थापना की जिसका लक्ष्य छात्रों को ओरिएंटल और पश्चिमी शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान की उच्च शिक्षा देना था. दो साल बाद स्कूल का विस्तार हुआ और वह एमएओ कॉलेज बन गया. 1920 में यह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना. लेकिन सवाल यह है कि इसके लिए अलीगढ़ को ही क्यों चुना गया?
देशभर की खाक छानने के बाद अलीगढ़ आया था पसंद
खलील लिखती हैं, ‘‘सर सैयद ने अपने सपनों के मुताबिक कॉलेज की स्थापना के लिए जगह चुनने से पहले तमाम जगहों की खाक छानी. उन्होंने कॉलेज में पढ़ने आने वाले (भविष्य में) छात्रों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर डॉक्टरों और अन्य प्रतिष्ठित लोगों से चर्चा की.’’ वह लिखती हैं कि इस संबंध में खान को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी गई जिसमें कहा गया कि किसी भी व्यक्ति के शारीरिक और बौद्धिक विकास के लिए अलीगढ़ की ‘आब-ओ-हवा’ बहुत अच्छी है.
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भूगौलिक कारणों से अलीगढ़ का किया गया था चुनाव
खलील ने अपनी पुस्तक में कहा है, ‘‘अलीगढ़ उत्तर भारत के दोआब क्षेत्र में है. इसकी स्थलाकृति कटोरी के आकार की है और यह दो टीलों के बीच में स्थित है. यह क्षेत्र बहुत उपजाऊ है. जलस्तर और जल की गुणवत्ता भी अच्छी थी.’’ एएमयू की पूर्व विद्यार्थी खलील लिखती हैं, ‘‘अंग्रेजों के मित्र होने के नाते सर सैयद अहमद खान को पता था कि उनके (अंग्रेजों) द्वारा छोड़ी गईं कई इमारतें खाली पड़ी हैं और उन्हें कॉलेज को दान किया जा सकता है. वर्तमान पीसी और पीवीसी लॉज उन्हीं इमारतों में से हैं जिन्हें अंग्रेज पीछे छोड़ गए थे.’’ लेखिका ने लिखा है कि नमक, काली मिर्च और नील का व्यापार उस दौरान अलीगढ़ के निवासियों का मुख्य व्यापार था और वहां की मुख्य आबादी जादव, ख्वाजा, शेरवानी, लखानी राजपूत थे.
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