New Delhi: पुर्व IPS अधिकारी आमोद कंठ का कहना है कि न्यायेतर हत्याएं या फर्जी एनकाउंटर में मौतें निर्मम हत्याओं के अलावा कुछ नहीं है. उनका कहना है कि भारत की अपराधिक न्याय प्रणाली के इतिहास में गैर-न्यायिक हत्योओं या झूठी मुठभेड़ों के परिणाम स्वरूप कथित अपराधियों की मौत पर चर्चा करने के लिए इससे अधिक उपयुक्त कोई अन्य समय नहीं है. 


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कंठ हाल ही में अपनी "पुलिस डायरीज़" श्रृंखला का दूसरा खंड "खाकी ऑन ब्रोकन विंग्स" लेकर आए हैं. जिसमें उन्होंने कुछ सबसे सनसनीखेज और जघन्य अपराधों की गुत्थी सुलझाई है. उनका कहना है कि दशकों से पुलिस तथाकथित न्याय देने के लिए "शॉर्ट-कट अपनाती रही है. इस तरह की हत्याएं या फर्जी मुठभेड़ मौतें निर्मम हत्याओं के अलावा और कुछ नहीं हैं. 


ब्लूम्सबरी इंडिया द्वारा प्रकाशित पुस्तक में कंठ आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर खामियों के बारे में बातते है कि उनमें से एक माफिया सरगना रोमेश शर्मा की भी है. जिसने सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति हड़पने के लिए अपने ठिकानों को भयभीत किया और राजनीतिक और कॉर्पोरेट जगत में शक्तिशाली लोगों तक अपनी पहुंच बनाकर जांच को विफल कर दिया.


उन्होंने यह भी बताया कि कैसे 'बिकिनी किलर' चार्ल्स शोभराज को दिल्ली की उच्च सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल से सनसनीखेज तरीके से भागने में कामयाब रही. बीएमडब्ल्यू हिट-एंड-रन मामले में न्याय की लड़ाई के पीछे की जटिल कहानी का उल्लेख किया है. जिसमें  जेसिका लाल  समेत कई लोगों की मौत हो गई. 


कंठ का कहना है कि सुरक्षा कानून व्यवस्था बनाए रखने या अपराध नियंत्रण की जो भी मजबूरियां हों. उसे पुलिस और न्याय तंत्र को निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. वह आगे कहते हैं कि किसी की हत्या करना यहां तक ​​कि दुर्दांत और बहुवांछित अपराधी या पुलिस हिरासत में क्यों ना हो उसे मार देना हत्या या गैर इरादतन हत्या होगी. 


उन्होंने PTI कहा कि जिन मामलों की मैंने जांच की उनमें से अधिकांश में आपराधिक न्याय प्रणाली के रास्ते पर बातचीत करते हुए मेरी बेहद खतरनाक यात्रा के दौरान मैंने पाया कि सबसे गंभीर और जघन्य अपराध यहां तक ​​कि आतंकवादियों माफियाओं और ड्रग्स से संबंधित या अमीर और शक्तिशाली लोगों द्वारा समर्थित अपराध भी हो सकता है. इसे कानून के ढांचे के भीतर तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है.


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