नई दिल्लीः राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC notices) ने केंद्र और छह राज्यों को नोटिस जारी कर विभिन्न मंदिरों, खास तौर पर भारत के दक्षिणी राज्यों, में देवदासी प्रथा ( Devadasi system) पर विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है. एनएचआरसी ने कहा है कि उसने इस प्रथा को लेकर एक मीडिया रिपोर्ट का खुद संज्ञान लिया है. आयोग ने कहा, ‘‘देवदासी प्रथा ( Devadasi system) को रोकने के लिए अतीत में देश में कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन यह (कुरीति) अब भी चलन में है. 
एनएचआरसी ने केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिवों और कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किए हैं. उन्हें छह सप्ताह के अंदर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है. 

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सुप्रीम कोर्ट ने प्रथा की निंदा की है 
शीर्ष अदालत ने भी नौजवान लड़कियों को देवदासी के तौर पर मंदिरों में छोड़ने के अमल की निंदा की है और कड़ा रुख अपनाया है. इस प्रथा को यौन शोषण और वेश्यावृत्ति के जरिए महिलाओं के साथ की गई बुराई बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इसे महिलाओं के जीने के अधिकार, सम्मान और समानता के अधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा बताया है.

गरीब घरों की होती हैं ज्यादातर देवदासी  
एनएचआरसी की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देवदासी बनने वाली ज्यादातर पीड़ित लड़कियां गरीब परिवारों और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘लड़की को देवदासी बनाने की प्रक्रिया में, किसी भी मंदिर के देवता से उसकी शादी कर दी जाती है. इसके बाद वह अपनी पूरी जिंदगी पुजारी और मंदिर के दैनिक अनुष्ठानों की देखभाल करने में गुजार देती है.’’

देश में इस वक्त हैं 80,000 देवदासी  
आयोग के मुताबिक, ‘‘इस कुप्रथा की शिकार ज्यादातर पीड़ितों का यौन शोषण किया जा रहा है. उनका पुरुषों द्वारा यौन शोषण किया जाता है, जब वे गर्भवती हो जाती हैं तो उन्हें उनके भाग्य पर छोड़ दिया जाता है.’’ आयोग ने कहा है, ‘‘कथित तौर पर, 70,000 से ज्यादा महिलाएं सिर्फ कर्नाटक में देवदासी के तौर पर अपनी जिंदगी गुजार रही है. न्यायमूर्ति रघुनाथ राव की अध्यक्षता में गठित एक आयोग ने माना था कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 80,000 देवदासी हैं.  


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