देश विरोधी मामलों के मुस्लिमों का बचाव करना इस NGO को पड़ा भारी, NIA कोर्ट ने दिया बड़ा आदेश
NIA Special Court on NGOs: 26 जनवरी 2018 को तिरंगा यात्रा के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा में 22 साल के चंदन गुप्ता की मौत हो गई थी. कोर्ट ने 28 आरोपियों को दोषी करार देते हुए कहा कि कई भारतीय और विदेशी एनजीओ द्वारा आरोपियों का बचाव करने की प्रवृत्ति न्यायपालिका और उसके हितधारकों के बारे में बहुत खतरनाक और संकीर्ण मानसिकता को बढ़ावा दे रही है.
NIA Special Court on NGOs: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की एक स्पेशल कोर्ट ने मुल्क में आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के मामलों में मुल्जिमों का बचाव करने वाले एक दर्जन से ज्यादा गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) को झटका देते हुए केंद्र और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को इन संगठनों के फंड स्रोतों और उनके कामकाज के तरीके की जांच करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और बीसीआई को इन एनजीओ के सामूहिक उद्देश्यों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने और न्यायिक प्रक्रिया में इन एनजीओ के अनुचित हस्तक्षेप को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करने को भी कहा है. स्पेशल एनआईए कोर्ट के जज वीएस त्रिपाठी ने कासगंज सांप्रदायिक हिंसा मामले में हाल में 28 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए केंद्र और बीसीआई को उपरोक्त निर्देश जारी किए.
इन एनजीओं को करना पड़ेगा जांच का सामना
साल 2018 में कासगंज में तिरंगा यात्रा के दौरान एक शख्स की मौत हो गई थी. कोर्ट के आदेश के बाद भारत स्थित एनजीओ- सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस (मुंबई), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (दिल्ली), रिहाई मंच (लखनऊ) और यूनाइटेड अगेंस्ट हेट (दिल्ली) जांच के दायरे में आएंगे. इनके अलावा, विदेशी एनजीओ - अलायंस फॉर जस्टिस एंड अकाउंटेबिलिटी (न्यूयॉर्क), इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (वाशिंगटन डीसी) और साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप (लंदन) - को भी जांच का सामना करना पड़ेगा.
कोर्ट ने एनजीओ की खिंचाई की
एनजीओ की खिंचाई करते हुए अदालत ने सभी बुद्धिजीवियों, संस्थाओं और न्यायिक व्यवस्था के हितधारकों से कहा कि वे इस बात पर गौर करें कि आखिर ऐसे एनजीओ आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के मामलों में मुल्जिमों का बचाव करने और उन्हें कानूनी सहायता देने के लिए आगे क्यों आते हैं, जबकि कानून में पहले से ही प्रावधान है कि अगर कोई मुल्जिम कोर्ट में अपना बचाव करने की स्थिति में नहीं है, तो उसे मुफ्त में वकील मुहैया कराया जा सकता है.
कोर्ट ने क्या कहा?
अदालत ने अपने फैसले में कहा, "इन हितधारकों को कासगंज सांप्रदायिक हिंसा मामले में इन एनजीओ की भूमिका पर भी गौर करना चाहिए." जज इन एनजीओ की भूमिका पर गंभीर रूप से चिंतित थे, जिन्होंने कथित तौर पर कासगंज मामले में मुल्जिमों के लिए महंगे वकीलों को काम पर रखा था.
अदालत ने कहा, "न्यायिक प्रणाली के हितधारकों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के कासगंज में सांप्रदायिक झड़प में इन एनजीओ की क्या दिलचस्पी हो सकती है." एनआईए अदालत ने 2018 में कासगंज में हुई हिंसा को शुक्रवार को 'सुनियोजित साजिश' करार दिया था और 28 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
इस मामले बाद पकड़ा तुल
26 जनवरी 2018 को तिरंगा यात्रा के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा में 22 साल के चंदन गुप्ता की मौत हो गई थी. कोर्ट ने 28 आरोपियों को दोषी करार देते हुए कहा कि कई भारतीय और विदेशी एनजीओ द्वारा आरोपियों का बचाव करने की प्रवृत्ति न्यायपालिका और उसके हितधारकों के बारे में बहुत खतरनाक और संकीर्ण मानसिकता को बढ़ावा दे रही है. इससे पहले अदालत में अभियोजन ने बताया कि आतंकवाद और देश विरोधी मामलों में गिरफ्तार व्यक्तियों के लिए कई एनजीओ वकीलों को उनका बचाव करने के लिए भेजते हैं. यह सिर्फ मुस्लिम आरोपियों के लिए किया जाता है.
अभियोजक ने की थी ये मांग
अभियोजक ने मांग की थी, 'यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है क्योंकि इससे असमाजिक तत्वों का मनोबल बढ़ता है. अदालत को इस प्रवृत्ति को रोकना चाहिए.' आतंकवाद और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के आरोपियों को कानूनी सहायता प्रदान करने के आंकड़ों पर गौर करते हुए, न्यायाधीश ने कहा कि इस अदालत में अक्सर यह देखा गया है कि जब भी किसी आरोपी को जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, केरल, असम, पंजाब और अन्य राज्यों से आतंकवाद के मामलों, जाली मुद्रा के मामलों, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने, गोपनीय जानकारी लीक करने या राष्ट्र के हित के खिलाफ काम करने के मामलों के संबंध में गिरफ्तार किया जाता है, तो उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए कुछ वकील पहले से अदालत में मौजूद रहते हैं और ऐसे ज्यादातर वकीलों के कथित तौर पर इन गैर सरकारी संगठनों के साथ संबंध होते हैं.