Ibn-E-Insha Hindi Shayari: इब्ने इंशा (Ibn-e-Insha) उर्दू के बड़े शायर थे. वह उर्दू के मजाह निगार थे और अखबारों के लिए कॉलम लिखते थे. उनका असल नाम शेर मोहम्मद खान (Sher Muhammad Khan) था. उनकी पैदाइश 15 जून 1927 को पंजाब के जिला जालंधर में हुई. उनकी शायरी कहने की कला ऐसी थी जो नौजवानों को मुतासिर करती थी. उनकी सबसे मशहूर गजल 'इंशा जी उठो अब कूच करो' है. इंशा ने चीन की कई कविताओं को उर्दू में लिखा. उनका इंतेकाल 11 जनवरी 1978 को इंग्लैंड में हुई.


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अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का


कब लौटा है बहता पानी बिछड़ा साजन रूठा दोस्त
हम ने उस को अपना जाना जब तक हाथ में दामाँ था


हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे
तू याद रहेगा हमें हाँ याद रहेगा


हम घूम चुके बस्ती बन में
इक आस की फाँस लिए मन में


हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता
हर किसी की नज़र नहीं होती


हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी 
सैकड़ों दर थे मिरी जाँ तिरे दर से पहले 


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अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले 
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क़ में घर से पहले


कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर 
जंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा 


बेकल बेकल रहते हो पर महफ़िल के आदाब के साथ 
आँख चुरा कर देख भी लेते भोले भी बन जाते हो 


कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो 
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो


वहशत-ए-दिल के ख़रीदार भी नापैद हुए 
कौन अब इश्क़ के बाज़ार में खोलेगा दुकाँ 


जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे 
दीवानों की सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या 


बे तेरे क्या वहशत हम को तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ 
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है 


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