नई दिल्लीः तकरीबन 50 साल पहले गर्मी के महीने में एक शाम को पीयूष मिश्रा को बचपन में एक दूर की महिला रिश्तेदार के हाथों यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा था. इस हादसे ने उन्हें जिंदगी भर के लिए झकझोर कर रख दिया था. पीयूष ने अपने साथ घटी इस घटना का जिक्र हाल ही में जारी अपने आत्मकथात्मक उपन्यास ’तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’ में किया है. मिश्रा ने कहा कि उन्होंने राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी किताब में सिर्फ नाम बदले हैं और सच्चाई को ज्यों का त्यों रखा है, क्योंकि उनका मकसद अब किसी से बदला लेने का नहीं है. पीयूष मिश्रा की यह किताब ग्वालियर की तंग गलियों से लेकर दिल्ली के सांस्कृतिक केंद्र मंडी हाउस और आखिर में मुंबई तक की उनकी यात्रा की कहानी बताती है. 

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सेक्स से पहली मुलाकात शानदार होनी चाहिए 
मिश्रा ने 7वीं कक्षा में पढ़ने के दौरान हुई घटना के बारे में बात करते हुए कहा, " इससे मैं हैरान रह गया कि आखिर ये क्या हुआ!’’ उन्होंने आगे कहा, “सेक्स इतनी अच्छी चीज है कि इसके साथ आपकी पहली मुलाकात भी अच्छी और शानदार होनी चाहिए, नहीं तो यह आपको जीवन भर के लिए डरा देता है. यह आपको जिंदगी भर के लिए परेशान कर देता है. उस यौन हमले ने मुझे जीवनभर कष्ट दिया और इससे बाहर आने में मुझे काफी अरसा लग गया. 
पीयूष मिश्रा ने कहा कि मैं कुछ लोगों की पहचान छुपाना चाहता हूं. उनमें से कुछ महिलाएं हैं, और कुछ पुरुष जो अब फिल्म उद्योग में अच्छी तरह से स्थापित हो चुके हैं. इस पुस्तक में, प्रसिद्ध अभिनेता, गायक और संगीतकार संतप त्रिवेदी, या हेमलेट के आत्मकथात्मक चरित्र के माध्यम से अपने जीवन का वर्णन किया गया है. 

डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़कर आए थे नाटक करने 
ग्वालियर के एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले पीयूष मिश्रा ने बचपन से ही मुखर और वाद्य संगीत, पेंटिंग्स, मूर्तियों, कविता और अंततः रंगमंच की तरफ रुख करके एक बहुआयामी कलाकार के रूप में खुद को स्थापित किया है. 
पुस्तक के मुताबिक, भले ही उनके पिता ने उन पर चिकित्सा विज्ञान में करियर बनाने का दबाव डाला था, लेकिन मिश्रा ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और 20 साल की उम्र में एनएसडी में शामिल होने का फैसला किया. इसी के साथ थिएटर और अभिनय के साथ एक आजीवन रोमांस का उनका सफर शुरू हो गया था. 


इन फिल्मों ने दिलाई पहचान 
शुरू में दिल्ली छोड़ने के लिए अनिच्छुक, दिखने वाले मिश्रा ने  2000 के दशक की शुरुआत में अपने सपनों के शहर मुंबई की तरफ रुख किया था, जबकि इस वक्त तक उनके कई दोस्तों ने मुंबई में करियर स्थापित कर लिया था. उन्होंने विशाल भारद्वाज की 'मकबूल’ (2004), अनुराग कश्यप की 'गुलाल’ (2009) और सबसे विशेष रूप से, 2012 में 'गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्मों में एक अभिनेता, गीतकार, गायक, पटकथा लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई. 
सिर्फ उनका अभिनय ही नहीं, मिश्रा के गाने भी श्रोताओं, खासकर युवा पीढ़ी से जुड़े हुए हैं. मिश्रा ने 'गुलाल’ और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्मों के लिए गीत लिखा, उसे संगीतबद्ध किया और गाया भी है. मिश्रा ने कहा कि जहां किशोर कुमार शीर्ष पसंदीदा हैं, वहीं मेहदी हसन, गुलाम अली और जगजीत सिंह जैसे गजल दिग्गज भी उनकी प्लेलिस्ट में हैं. 


हम चाय पीने के लिए दीवार पर चढ़ जाते थे
मिश्रा ने कहा, “मैं लंबे अरसे से एक उपन्यास लिखना चाहता था, लेकिन अब यह काम पूरा हो गया है. मैं एक संगीत निर्देशक के रूप में नहीं रहना चाहता, न ही मैं गाना चाहता हूं. मैं सिर्फ अभिनय भी नहीं करना चाहता... अब, मेरे दिमाग में फिल्म निर्देशन है. यह ऐसी चीज है जिसका मैं खोज करना चाहता हूं. देखते हैं कि ऐसा कब होता है?"  एनएसडी में अपने दिनों के बारे में और संस्थान अब कैसे आगे बढ़ रहा है, इस सवाल पर, मिश्रा ने कहा कि हर चीज की तरह, प्रीमियर थिएटर स्कूल भी गिरावट का सामना कर रहा है. 30 साल पहले हमारे पास जो था वह अब नहीं है ... अब कैंपस के चारों ओर बड़ी दीवारें हैं. ऐसा तब नहीं था जब हम पढ़ रहे थे. हम चाय पीने या भुट्टा खाने के लिए दीवार पर चढ़ जाते थे. लेकिन ये चीजें अब गायब हो गई हैं. अब आपके पास वह स्वतंत्रता नहीं है, लेकिन फिर भी यह हमारा संस्थान है और जब भी हमारा मन करता है हम वहां जाते हैं."


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