बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सोशल मीडिया के जरिये एकत्र की गई जानकारी जनहित याचिका (PIL) में दलीलों का हिस्सा नहीं हो सकती. याचिका में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र में हर साल असुरक्षित जल निकायों में सालाना डेढ़ से दो हजार लोगों की मौत हो जाती हैं. मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीड ने अधिवक्ता अजित सिंह घोरपड़े की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें महाराष्ट्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वह राज्य के जलप्रपातों और जल निकायों को सुरक्षित बनाने के लिए कदम उठाए.


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सतही है याचिका
अजित के वकील मनींद्र पांडेय ने दावा किया कि इस तरह के असुरक्षित जलप्रपातों और जल निकायों में हर साल करीब डेढ़ से दो हजार लोगों की मौत होती है. इस पर पीठ ने यह जानना चाहा कि याचिकाकर्ता को मौत से संबंधित यह जानकारी कहां से प्राप्त हुई. पांडेय ने अदालत को बताया कि उन्होंने यह जानकारी अखबारों और सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये हासिल की है. इस पर अदालत ने उनसे कहा कि याचिका सतही है और इसमें बहुत सी चीजों का ब्योरा नहीं दिया गया है. 


अदालत ने लगाई फटकार
मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने कहा, ‘‘सोशल मीडिया से एकत्र जानकारी एक जनहित याचिका में दलीलों का हिस्सा नहीं हो सकती. आप अदालत का समय बर्बाद कर रहे हैं.’’ अदालत ने कहा, ‘‘कोई पिकनिक के लिए गया और दुर्घटनावश डूब गया तो क्या इसके लिए जनहित याचिका दायर करेंगे? कोई व्यक्ति दुर्घटना के कारण डूब गया, तो यहां अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 12 (समानता और जीवन का अधिकार) का किस तरह उल्लंघन हुआ है.’’ 


दोबारा याचिका दायर करने की हिदायत
इस पर पांडेय ने कहा कि राज्य सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह इन जल निकायों और जल प्रपातों के पास जाने वाले लोगों की सुरक्षा और संरक्षा के लिए कदम उठाएं. हालांकि, पीठ ने कहा कि ज्यादातर दुर्घटनाएं ‘लापरवाही’ के कारण होती हैं. पीठ ने कहा ‘‘आप महाराष्ट्र सरकार से क्या उम्मीद करते हैं? क्या हर जलप्रपात और जल निकाय की रखवाली पुलिस द्वारा की जा सकती है? ’’ पीठ ने याचिकाकर्ता को जनहित याचिका वापस लेने का निर्देश दिया और कहा कि वह समुचित ब्योरे के साथ एक ‘अच्छी’ जनहित याचिका दायर कर सकते हैं. इस पर याचिकाकर्ता याचिका वापस लेने पर राजी हो गये.