Poetry on Borders: सरहदें मतलब बंदिशें. यह इंसानों की बनाई हुई होती हैं. यह सिर्फ इंसानों के लिए होती हैं. नदियों, परिंदों के लिए कोई भी सरहदें नहीं होती. समाज में मआशरे में भी बंदेशें होती हैं. आशिक और माशूक के लिए भी समाज में सरहदें बना दी जाती हैं. उन पर बंदिशें लगाई जाती हैं. इसी को उर्दू के कई शायरों ने अपनी शायरी का मौजूं बनाया है. आज हम पेश कर रहे हैं दरहदों पर बेहतरीन शेर.
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हमारा ख़ून का रिश्ता है सरहदों का नहीं 
हमारे ख़ून में गँगा भी चनाब भी है 
-कँवल ज़ियाई
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मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती 
हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए 
-ख़ालिद मोईन
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जैसे दो मुल्कों को इक सरहद अलग करती हुई 
वक़्त ने ख़त ऐसा खींचा मेरे उस के दरमियाँ 
-मोहसिन ज़ैदी
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सरहदें अच्छी कि सरहद पे न रुकना अच्छा 
सोचिए आदमी अच्छा कि परिंदा अच्छा 
-इरफ़ान सिद्दीक़ी
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ज़मीं को ऐ ख़ुदा वो ज़लज़ला दे 
निशाँ तक सरहदों के जो मिटा दे 
-परवीन कुमार अश्क
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दिलों के बीच न दीवार है न सरहद है 
दिखाई देते हैं सब फ़ासले नज़र के मुझे 
-ज़फ़र सहबाई
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ज़माने ने लगाईं मुझ पे लाखों बंदिशें लेकिन 
सर-ए-महफ़िल मिरी नज़रों ने तुम से गुफ़्तुगू कर ली 
-अशोक साहनी
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बंदिशें इश्क़ में दुनिया से निराली देखें
दिल तड़प जाए मगर लब न हिलाए कोई
-आले रज़ा रज़ा
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कहाँ वो लोग जो थे हर तरफ़ से नस्तालीक़
पुरानी बात हुई चुस्त बंदिशें लिखना
-फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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रौशनी बाँटता हूँ सरहदों के पार भी मैं 
हम-वतन इस लिए ग़द्दार समझते हैं मुझे 
-शाहिद ज़की
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सरहदें रोक न पाएँगी कभी रिश्तों को 
ख़ुश्बूओं पर न कभी कोई भी पहरा निकला 
-अज्ञात
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उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता 
जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें 
-अज्ञात
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