Today's Poetry: हर इंसान में भूलने की आदत होती है. भूलना कुछ मामलों में बुरा है तो कुछ मामलों में अच्छा. अगर आप अपना लिखा पढ़ा और अपना वक्त पर अपना काम करना भूल जाते हैं तो यह बुरा है. लेकिन अगर आप अपने साथ हुए किसी बुरे हादसे को भूल जाते हैं और जिंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं तो यह अच्छा माना जाता है. अक्सर आशिक-माशूक एक दूसरे से शिकायत करते हैं कि उन्हें भुला दिया गया. इन्हीं शिकवे शिकायतों को शायर ने अपने लफ्जों में पिरोया है. पढ़ें भूलने पर चुनिंदा शेर. 


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माँ ने लिखा है ख़त में जहाँ जाओ ख़ुश रहो
मुझ को भले न याद करो घर न भूलना
-अजमल अजमली
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इस शहर का दस्तूर है रिश्तों का भुलाना
तज्दीद-ए-मरासिम के लिए हाथ न बाँधूँ
-मुज़फ़्फ़र ईरज
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तुम से छुट कर भी तुम्हें भूलना आसान न था
तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए
-निदा फ़ाज़ली
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जब तुझे भूलना चाहा दिल ने
इक नए ग़म की सज़ा दी हम ने
-शोहरत बुख़ारी
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तुझ से बिछड़ के सम्त-ए-सफ़र भूलने लगे
फिर यूँ हुआ हम अपना ही घर भूलने लगे
-हसन अब्बास रज़ा


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तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है
न उस को भूलना है और न उस को याद करना है
-हुमैरा राहत
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दिल को भी ग़म का सलीक़ा न था पहले पहले
उस को भी भूलना अच्छा लगा पहले पहले
-किश्वर नाहीद
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याद में तेरी दो-आलम को भुलाना है हमें
उम्र भर अब कहीं आना है न जाना है हमें
-ज़फ़र ताबाँ
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ख़ुदा शाहिद है मेरे भूलने वाले ब-जुज़ तेरे
मुझे तख़्लीक़-ए-आलम राएगाँ मालूम होती है
-सिकंदर अली वज्द
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याद और याद को भुलाने में
उम्र की फ़स्ल कट गई देखो
-शीन काफ़ निज़ाम
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मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
मगर जो बीच में कम-बख़्त शाइरी है ना
अफ़ज़ल ख़ान
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तू मुझ को भूलना चाहे तो भूल सकता है
मैं एक हर्फ़-ए-तमन्ना तिरी किताब में हूँ
-खलील तनवीर
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