Exclusive: दिल्ली वक्फ बोर्ड में दर्ज हैं 488 कब्रिस्तान लेकिन बचे हैं महज 30; कौन हैं कब्रिस्तान का चोर?
Qabristan Ke Chor: दिल्ली में अगले करीब 5 वर्षों बाद मुर्दों को दफनाने की जगह मिलना मुश्किल है, क्योंकि यहां सिर्फ 30 कब्रिस्तान बचे हुए हैं. जबकि वक्फ बोर्ड से जब सवाल किया गया तो उनके मुताबिक 488 कब्रिस्तान हैं. अब वो कहां हैं इनका कुछ नहीं पता?
कितना है बदनसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए,
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का ये शेर क्यों बड़ी बेक़रारी से याद आ रहा हैं. क्यों कूए यार में दफ़्न होने का फ़साना फिर छिड़ा है. क्यों क़ब्र से लेकर क़ब्रिस्तान की दास्तान ज़बना पर फिर आई है. क्या वाक़ई अपने ही दयार में दफ़्न होने की तमन्ना दिल में दफ़्न होकर रह जाने वाली है. क्या आने वाले वक़्त में अपनी मिट्टी से बिछड़ने का दर्द लिखने वाले कई और बहादुर शाह ज़हर जैसे शायर क़लम उठाएंगे. क्या आने वाला दौर मुर्दों पर मुसीबत ढाएगा. क्या दो गज़ ज़मीन की ऐसी क़िल्लत होगी कि वारीसिन रसूख़दारों से अपने मुर्दों के लिए सिफ़ारिशें कराएंगे. ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब हम अपनी इस तफ़सीली रिपोर्ट में पेश करेंगे.
महीनों की तफ़्तीश और तहक़ीक़ात के बाद जब हम इन उन क़ब्रों पर पहुंचे तो पता चला कि इनपर इमारते खड़ी हैं, कमरे बने हैं, कमरों में खिड़कियां लगी हुई हैं. खिड़कियों से क़हक़हों की आवाज़े आ रही हैं. क्या आप जानते हैं कि आईंदा 5 बरस बाद दिल्ली में मुसलमानों को दफ़्न करने के लिए जगह नहीं होगी. जी हां आपने सच सुना. सिर्फ़ पांच साल बाद. आप हैरान ज़रुर होंगे लेकिन ये बिल्कुल सच है.
इसमें कोई शक नहीं कि डिफ़ेंस और रेलवे के बाद वक़्फ़ बोर्ड वो वाहिद इदारा है जिसके पास मुल्क में सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी है लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि वक़्फ़ बोर्ड की जितनी जमीनों को अलग-अलग तरीकों से नुक़सान पहुंचा है उतना किसी दूसरे इदारे की प्रॉपर्टी को नहीं पहुंचा, हालात ये बन गए हैं कि देश की राजधानी दिल्ली में अब मुसलमानों के दफ़्न होने के लिए कब्रिस्तान कम हो गए हैं और आने वाले कुछ सालों में मुर्दो के लिए दो गज़ जमीन की भी किल्लत होने वाली है. ये हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं बल्कि जो आंकड़े और सच्चाई आज हम आपको दिखाएंगे वो आप की आंखे खोल देगी.
दिल्ली की ये हक़ीक़त भी दिलचस्प है कि गुज़िश्ता 40 बरस में मुसलमानों की आबादी में कई गुना इज़ाफ़ा हुआ है लेकिन मौत के आखिरी सफर के बाद दो गज़ ज़मीन के लिए दिल्ली में हालात तंग हो गए है. क्योंकि दिल्ली के कब्रिस्तान अब खुद ही मुर्दा हो गए हैं. ज़ी सलाम की टीम दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में पहुंची और ज़मीनी हक़ीक़त जानने की कोशिश की. इसके अलावा दिल्ली वक्फ बोर्ड से भी बात चीत की. वक़्फ़ बोर्ड ने ज़ी सलाम को जानकारी दी कि दिल्ली में कबिस्तान की कुल तादाद 488 है लेकिन इनमें से 80 फ़ीसद से ज़्यादा कब्रिस्तान में अब मुर्दे दफ़्न नहीं होते हैं. बल्कि उन क़ब्रिस्तान पर या तो किसी सरकारी एजेंसी का कब्ज़ा है या फिर आम लोगों ने इन कब्रिस्तान पर अपने आशियाने बसा लिए हैं.
सवाल यही है कि दिल्ली में ज़िंदा ज़मीरों ने मुर्दों की क़ब्रों पर बस्तियां कब, क्यों और कैसे आबाद कर लीं. ऐसा भला कोई कैसे कर सकता है कि किसी की क़ब्र पर लगे कतबे को हटा कर उसपे अपने ख़्वाबों की आलीशान इमारत खड़ी करके अपनी नेम प्लेट लगा दे. ग्राउंड ज़ीरों पर जा कर हमारी टीम ने ऐसे ही पर्दादार सवालों की पर्देदारी को बेनक़ाब कर दिया.
ज़मीनी हक़ीक़त जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. क्योंकि दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड और दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन की लिस्ट में तो 600 से ज़्यादा क़ब्रिस्तान हैं लेकिन ज़ी सलाम की टीम जब ग्राउंड ज़ीरो पर पहुंची तो हालात कुछ और ही कहानी बयां करते नज़र आए. हम आपको उन तमाम कब्रिस्तान के हालात से रूबरू कराएंगे जो खुद ही मुर्दा हो गए है. लेकिन उससे पहले हम आपको दिल्ली वक्फ बोर्ड से हुई
कहां गए वो क़ब्रिस्तान जिसमें दफ़्न थीं किसी मां की मामता. किसी बुज़ुर्ग की हस्ती. किसी माशूक़ का इश्क़...किसी जवान का अरमान....परदेस में मरे किसी मुसाफ़िर की आख़िरी निशानीं...ज़मीन निगल नहीं सकती. आसमान खा नहीं सकता. हवाएं उड़ा नहीं सकतीं. सैलाब डुबो नहीं सकता. काग़ज़ों पर बनीं वो क़ब्रें गयीं तो कहां गयीं.
ज़ी सलाम ने दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड से जब सवाल किया कि दिल्ली में कितने क़ब्रिस्तान हैं तो जवाब मिला कि दिल्ली में कुल 488 कब्रिस्तान हैं और जब ये जानने की कोशिश की कि कितने क़ब्रिस्तान ज़िंदा हैं यानी कितने क़ब्रिस्तान में फिलहाल तदफ़ीन हो रही है. तो दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के अदादो शुमार चौंकाने वाले थे. क्योंकि कुल 488 क़ब्रिस्तान में से सिर्फ़ 30 क़ब्रिस्तान में ही तदफीन होती है.
सवाल सिर्फ़ इस बेवफ़ा ज़माने से नहीं सवाल तो उन ख़ुदग़र्ज़ रिश्तों से भी जो इन क़ब्रों पर फातिहा पढ़ने नहीं आया. फूल चढ़ाने नहीं आया. चराग़ रौशन करने नहीं आया. तिलावत करने नहीं आया. एक दो क़ब्रें होंती तो आंसू पुछ जाते. पूरे-पूरे क़ब्रिस्तान ही सफ़हए हस्ती से मिटा दिए गए. 488 क़ब्रिस्तान में से सिर्फ़ 30 ही क़ब्रिस्तान ही बचें हैं लेकिन न तो परिवार वालों के कानों पर जूं रेंगी न मिल्लत के ठेकेदारों और सियासत के ज़िम्मेदारों की नींद ख़्वाबे ख़रगोश से टूटी. सवाल यही कि आगे होगा क्या? कहां जाएंगे ये मरने वाले?
जी सलाम की इस इनवेस्टीगेटिव स्टोरी को पढ़ने के बाद आप अपनी राये दें और बताएं कि इसका जिम्मेदारी किसको मानते हैं. आप अपना जवाब हमारे नंबर (8447333111) पर भेज सकते हैं.
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