Ramazan Special: इस्लाम के पांच बुनियादी सिद्धांतों में तौहीद, नमाज, हज और जकात के साथ रोजा भी शुमार है. इन दिनों रमजान का महीना चल रहा है जो बड़ी फजीलतों और बरकतों वाला है. इस महीने में अल्लाह की तरफ से बंदों पर अल्लाह की रहमतें बरसती हैं. हदीसों में रमजान के तीन अशरों का जिक्र आता है. तीनों की बहुत अहमियत है. हजरत सलमान फारसी रजि0 से रिवायत है कि प्रोफेट मोहम्मद स0 के मुताबिक रमजान का पहला अशरा रहमत का है, दूसरा अशरा मगफिरत का और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से आजादी का है. इस अशरे में अल्लाह के बंदे अल्लाह से जहन्नम की आग से पनाह मांगते हैं.


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पूरी रात करते हैं इबादत


यूं तो रमजान का पूरा महीना बहुत अहमियत वाला है, लेकिन आखिरी के दस दिनों के फजायल और ज्यादा हैं. प्रोफेट मोहम्मद स0 रमजान के आखिरी अशरे में इबादत, शब बेदारी और जिक्र व फिक्र में और ज्यादा मुब्तिला हो जाते थे. हजरत आइशा रजि0 फरमाती हैं कि आखिरी अशरा शुरू हो जाता तो प्रोफेट मोहम्मद स0 रात भर बेदार रहते और अपनी कमर कस लेते और अपने घर वालों को भी इबादत के लिए जगाते थे. 


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आखिरी अशरे में ऐतिकाफ


रमजान के आखिरी अशरे की एक अहम खुसूसियत ऐतिकाफ है. आप स0 रमजान के आखिरी अशरे में ऐतिकाफ फरमाते थे. ऐतकाफ वह अमल है जिसमें कोई शख्स दस दिनों के लिए या इससे कम दिनों के लिए मस्जिद में रहता है और यहां इबादत करता है.


आखिरी अशरे में लैलतुल कद्र


रमजान के आखिरी अशरे की एक अहम फजीलत यह भी है कि इसमें एक ऐसी रात पाई जाती है जो हजार महीनों से भी ज्यादा अफजल है. इस रात को लैलतुल कद्र की रात कहते हैं. इस रात में पूरी रात जाग कर अल्लाह की इबादत करनी होती है. इसी रात को कुरान मजीद जैसा अनमोल तोहफा इंसानियत को मिला था. इस रात की इतनी फजीलत है कि इस पर अल्लाह ने कुरान में एक सूरह ही नाजिल कर दी.


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