नई दिल्लीः भारत के स्वतंत्रता सेनानी और देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को भी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया है.  इससे पहले एनसीईआरटी ने पिछले साल अपने सिलेबस ने गुजरात दंगों, मुगल अदालतों, आपातकाल, शीत युद्ध और नक्सली आंदोलन जैसे विषयों को हटा दिया था. 
हालांकि, एनसीईआरटी ने दावा किया है कि इस साल पाठ्यक्रम में कोई बदलाव नहीं किया गया है. पिछले साल जून में पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाया गया था. एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने कहा कि पुस्तक की सामग्री का निरीक्षण किया गया है. 


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कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक के पहले अध्याय, जिसका शीर्षक 'संविधान - क्यों और कैसे’ है, में संविधान सभा समिति की बैठकों से आज़ाद का नाम हटाने के लिए एक पंक्ति को संशोधित किया गया है. इसमें लिखा गया है कि आमतौर पर, जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल या बीआर अंबेडकर इन समितियों की अध्यक्षता करते थे. इसी पाठ्यपुस्तक के दसवें अध्याय में, “संविधान का दर्शन“ शीर्षक से, जम्मू और कश्मीर के सशर्त परिग्रहण का संदर्भ भी हटा दिया गया है. उदाहरण के लिए, जम्मू और कश्मीर का भारतीय संघ में प्रवेश संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत अपनी स्वायत्तता की रक्षा करने की प्रतिबद्धता पर आधारित था, लेकिन अब नए अध्याय में इस संदर्भ को हटा दिया गया है. 


पाठ्य पुस्तकों से गांधीजी की मृत्यु के बाद देश में सांप्रदायिक स्थिति खराब करने की कोशिश, हिंदू चरमपंथियों के उकसावे की कार्रवाई, गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता और आरएसएस जैसे संगठनों पर कुछ वक्त के लिए प्रतिबंध लगाने जैसे विषयों को कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से गायब कर दिया गया है. 
एनसीईआरटी द्वारा कक्षा 12 की दो पाठ्यपुस्तकों से 2022 की सांप्रदायिक हिंसा के संदर्भ को हटाने के महीनों बाद, गुजरात दंगों से संबंधित अंशों को कक्षा 11 की समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक से भी हटा दिया गया है.
गौरतलब है कि भाजपा सरकार भारत से मुगलों के पहचान को खत्म करने की कोशिश कर रही है. इसी के तहत इतिहास की किताबों से मुगलों की जानकारी और उनसे जुड़े स्थानों के नामों को बदल रही है. इसी योजना के तहत सरकार ने मुगल गार्डन का नाम भी बदलकर अमृत उद्यान रख दिया था. इसी के साथ भाजपा शासित राज्यों में मुगलकालीन स्थानों के उर्दू नामों को हटाकर हिंदी नाम रखे जा रहे हैं. 
वहीं, पिछले साल, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 2009 में शुरू की गई मौलाना आजाद फैलोशिप को बंद कर दिया था, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को पांच साल के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी.


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