Sabir Zafar Poetry: साबिर जफर उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. उनकी पैदाईश 12 सितंबर, 1949 को रावलपिंडी जिले में हुई. उनका असली नाम मुजफ्फर अहमद है. उन्होंने साल 1968 में शेर व शायरी शुरू की. शायर बनने से पहले वह एक सियासी कार्यकर्ता थे. वह सिंध सरकार के प्रेस सूचना विभाग से जुड़े हैं. उनकी गजलों को गुलाम अली, मुन्नी बेगम सहित कई जाने-माने गायकों ने गाया है. साबिर के शेरों को जहां मशहूर गायकों ने गाया, वहीं उनकी शायरी को अदबी हलके में पसंद किया गया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हर शख़्स बिछड़ चुका है मुझ से 
क्या जानिए किस को ढूँढता हूँ 


मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया 
जिस से जो व'अदा किया पूरा किया 


शाम से पहले तिरी शाम न होने दूँगा
ज़िंदगी मैं तुझे नाकाम न होने दूँगा 


बदन ने छोड़ दिया रूह ने रिहा न किया 
मैं क़ैद ही में रहा क़ैद से निकल के भी 


न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते 


यह भी पढ़ें: "हया नहीं है जमाने की आंख में बाक़ी, ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग"


वो क्यूँ न रूठता मैं ने भी तो ख़ता की थी
बहुत ख़याल रखा था बहुत वफ़ा की थी 


मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का है
किवाड़ रात को घर का अगर खुला रह जाए 


उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा
जाने क्या लफ़्ज़ थे जो हम से न तहरीर हुए 


शिकायत उस से नहीं अपने-आप से है मुझे
वो बेवफ़ा था तो मैं आस क्यूँ लगा बैठा 


सुब्ह की सैर की करता हूँ तमन्ना शब भर
दिन निकलता है तो बिस्तर में पड़ा रहता हूँ 


बेवफ़ा लोगों में रहना तिरी क़िस्मत ही सही
इन में शामिल मैं तिरा नाम न होने दूँगा 


ख़िज़ाँ की रुत है जनम-दिन है और धुआँ और फूल
हवा बिखेर गई मोम-बत्तियाँ और फूल


इस तरह की खबरें पढ़ने के लिए zeesalaam.in पर जाएं.