Sahir Ludhiyanvi Poetry: साहिर लुधियाना की पैदाइश 8 मार्च 1921 को हुई. उनका बचपन का नाम अब्दुलहई था. साहिर की परवरिश उनके नानिहाल में हुई. जब वो मैट्रिक्स में थे तभी शयरी करने लगे. इसके बाद उनका रुझान कम्युनिस्ट आंदोलन की तरफ़ हुआ. उनका और अम्रता प्रीतम का रिश्ता काफी सुर्खियों में रहा.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी


अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो
क्या चाहती है उन की नज़र पूछते चलो


आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को
अंजान हैं हम तुम अगर अंजान हैं आँखें


संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
इक धुँद से आना है इक धुँद में जाना है


हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं


कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया


आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं


ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम


हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही


अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ


तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है
तेरे हाथों में मिरे हाथ हैं ज़ंजीर नहीं


वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा