Saleem Kausar Hindi Shayari: सलीम कौसर उर्दू सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में शुमार होते हैं. सलीम कौसर की पैदाइश सन् 1945 को पानीपत भारत में हुई. बंटवारे के वक़्त सलीम का परिवार पाकिस्तान चला गया. इन्होंने बहुत से टीवी सीरियल के लिए गाने लिखे. महब्बत एक शजर है, ये चिराग है तो जला रहे आदि इनकी बेहतरीन किताबें हैं. इनकी ग़ज़ल 'मैं ख़याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है' बहुत मशहूर है.


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तुम ने सच बोलने की जुरअत की 
ये भी तौहीन है अदालत की 


पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे 
जो लोग डूब गए कश्तियाँ बनाते हुए 


साए गली में जागते रहते हैं रात भर 
तन्हाइयों की ओट से झाँका न कर मुझे 


क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम 
हम से ज़ियादा तेरा तलबगार कौन है 


कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए 
वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए 


मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले 
वो लोग मर के भी मरते नहीं मोहब्बत में 


साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला 
जाने क्या शय है जो बे-दख़्ल हुई है मुझ में 


मुझे सँभालने में इतनी एहतियात न कर 
बिखर न जाऊँ कहीं मैं तिरी हिफ़ाज़त में 


अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी 
इक दरिया में दूसरी बार उतरा नहीं जा सकता


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ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे 
फिर कैसे भला तेरी कहानी से निकलते 


रात को रात ही इस बार कहा है हम ने 
हम ने इस बार भी तौहीन-ए-अदालत नहीं की 


क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं 
कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं 


कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में 
कि इस के बाद जो किरदार था फ़साना हुआ 


देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ 
कोई रिश्ता ही नहीं ख़्वाब का ताबीर के साथ 


अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं 
जो यहाँ आबाद हैं उन पर भी घर खुलता नहीं 


मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है 
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है


अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा 
ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा 


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