Shakeel Badayuni Poetry Hindi: आज़ीम गीतकार शकील बदायूंनी का नाम ज़बान पर आते ही चेहरे पर एक खुशी सी तारी हो जाती है. उन्होंने उर्दू शायरी में अपना एक मुनफरिद मकाम बनाया. शकील बदायूंनी के फिल्मी गीत और गज़लें आज भी लोगों की ज़बान पर रहती हैं. उन्होंने मुग़ले आज़म, गंगा जमना, मदर इंडिया, अमर, सन ऑफ इंडिया, दिल्लगी, दीदार, मेला, दर्द, दास्तान, आदमी जैसी कई बड़ी दीगर फिल्मों के नग़में लिखे हैं. हम यहां उनके लिखे हुए शेर पेश कर रहे हैं.


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लम्हा लम्हा बार है तेरे बग़ैर 
ज़िंदगी दुश्वार है तेरे बग़ैर 


कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है 
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है 


ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया 
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया 


अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे 
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे 


काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ


मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन 
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया 


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मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतना 
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए 


हाए वो ज़िंदगी की इक साअत 
जो तिरी बारगाह में गुज़री 


बदलती जा रही है दिल की दुनिया 
नए दस्तूर होते जा रहे हैं 


ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया 
ख़ाली ही सही मेरी तरफ़ जाम तो आया 


तुझ से बरहम हूँ कभी ख़ुद से ख़फ़ा 
कुछ अजब रफ़्तार है तेरे बग़ैर 


तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो 
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना 


छुपे हैं लाख हक़ के मरहले गुम-नाम होंटों पर 
उसी की बात चल जाती है जिस का नाम चलता है 


हर दिल में छुपा है तीर कोई हर पाँव में है ज़ंजीर कोई 
पूछे कोई इन से ग़म के मज़े जो प्यार की बातें करते हैं 


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