Fatima Sheikh Birth Anniversary: 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक लड़की का जन्म होता है, जो आगे चलकर इस देश की पहली महिला टीचर बनती है. मैं बात कर रहा हूं समाजसेविका सावित्रीबाई फुले की पिछले सप्ताह पूरे देश ने उनका जन्मदिन मनाया और लड़कियों के लिए किए गए उनके कामों को सराहा, बेशक सावित्रीबाई फुले ने देश की लड़कियों के लिए काफी कुछ किया है. अगर वह ना होती तो शायद लड़कियों की पढ़ाई के बारे में कोई बात तक नहीं करता, लेकिन सावित्रीबाई फुले के इस काम में बहुत सारे लोगों का सहयोग था, जिसे शायद इतिहास के पन्नों में वह जगह नहीं मिली जो उन्हें मिलनी चाहिए थी. उन्हीं में से एक नाम है फातिमा शेख (Fatima Sheikh) का आप में से ज्यादातर लोगों ने इनका नाम 09 जनवरी 2022 से पहले तक शायद ही सुना होगा क्योंकि जब फातिमा शेख को उनके 191th Birth Anniversary पर Google ने अपने डूडल में जगह दी तब लोगों का ध्यान उस ओर गया कि आखिर ये फातिमा शेख कौन हैं? और फिर लोगों ने उन्हें गुगल पर सर्च करना शुरू किया. 


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देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका:
आज से ठीक 193 साल पहले 09 जनवरी 1831 को फातिमा शेख का जन्म महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था. फातिमा शेख को पहली मुस्लिम महिला टीचर के रूप में जाना जाता है. जब सावित्रीबाई फुले अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ लड़कियों की शिक्षा पर काम कर रही थीं, और लड़कियों के लिए स्कूल खोलनी की योजना बना रही थीं. तभी उनका साथ देने फातिमा शेख और उनके भाई उस्मान शेख सामने आते हैं, और फिर शुरू होता है लड़कियों की पढ़ाई का सिलसिला. 


फातिमा शेख के भाई ने दी थी सावित्रीबाई को अपने घर में जगह: 
बच्चों को पढ़ाने के लिए फातिमा शेख ने टीचर बनने की ट्रेनिंग भी ली और लोगों को मोटिवेट किया लड़कियों को पढ़ाने के लिए वक्त के साथ-साथ चीजें बदलने लगी और लोग अपने बेटियों को पढ़ाना शुरू करने लगे. ऐसा कहा जाता है कि जब ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने दलितों और महिलाओं की शिक्षा की बात करना शुरू किया तो उनके इस काम से नाराज होकर उनके परिवार वालों ने उन दोनों को घर से निकाल दिया था, तब दोनों पति-पत्नी को फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने अपने घर में जगह दी थी.


फातिमा शेख को नहीं मिला इतिहास के पन्नों में सही जगह: 
उस्मान शेख ने ही सावित्रीबाई फुले से अपने घर से लड़कियों को पढ़ाने की बात की थी. ऐसा कहा जाता है कि फातिमा शेख का ही वह घर था जहां से लड़कियों को पढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ. और फिर साल 1848 में फातिमा शेख के घर पर ही लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल खोला गया, लेकिन अफसोस कि जहां इतिहास के पन्नों में सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिबा फुले के कामों को सराहा गया, वहीं फातिमा शेख को गुमनामी की चादर में लपेटकर किसी कोने में छोड़ दिया गया, और किसी ने उसे खोलने की कोशिश भी नहीं की लेकिन गुगल के उस डुडल ने एक बार फिर से तमाम इतिहासकारों और सरकारों की आखें खोल दी है. इतिहासकार फातिमा शेख की कहानी को ढूंढने में लगे हैं वहीं सरकारें अब बच्चों को फातिमा शेख की कहानी किताबों के जरिये बता रही हैं.


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