Bilkis Bano: गुजरात दंगों के दौरान रेप का शिकार हुई बिल्किस बानो केस के सभी 11 मुजरिमों को गुजरात चुनाव से पहले रिहा कर दिया गया था. रिहाई के फैसले के बाद पीड़िता बिल्किस बानो ने देश की सबसे बड़ी अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और मुजरिमों की रिहाई के खिलाफ याचिका दाखिल की. जिसे आज सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. इस अर्ज़ी में बानो ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें गुजरात सरकार को 1992 के जेल नियमों के तहत 11 मुजरिमों की रिहाई के लिए इजाज़त दी थी. 


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हालांकि पुर्नविचार अर्जी खारिज होने के बावजूद बिलकिस बानो की सारी उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई है. गुजरात सरकार की तरफ से मुजरिमों की रिहाई के खिलाफ उनकी अलग से याचिका अभी SC में लंबित है. जिस पर सुनवाई होना बाकी है. पुर्नविचार अर्जी खारिज कर SC ने महज ये तय किया कि रिहाई के लिए 1992 की नीति लागू होगी, 2014 की नहीं. यानी सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के मुताबिक मुजरिमों की रिहाई के बारे में फैसला लेने का हक गुजरात सरकार का होगा (महाराष्ट्र का नहीं).


समझिए पूरा मामला


बता दें कि बिलकिस बानो केस के मुजरिमों को 11 मुजरिमों को उम्रकैद की सज़ा हुई थी. हालांकि उन्हें महज़ 15 साल बाद अगस्त 2022 में रिहा कर दिया गया. इस पर गुजरात सरकार का कहना है कि उसने राज्य की सजा माफी नीति के तहत सभी मुजरिमों को रिहा किया है. इसी रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और अदालत के 13 मई के आदेश पर पुनर्विचार करने की अपील की. 


अदालत ने 13 मई को एक अर्ज़ी पर सुनवाई करते हुए कहा था कि मुजरिमों को 2008 में सजा मिली है. इसलिए उनकी रिहाई के लिए 2014 में गुजरात में बने कठोर नियम लागू नहीं होंगे. क्योंकि सज़ा नियम बनने से पहले हुई है. इसलिए 2008 में जो नियम जारी थे वही नियम लागू होंगे और 2008 में 1992 के नियम लागू थे. बानो ने अदालत के इसी फैसले को लेकर पुनर्विचार याचिका लगाई. बानो का कहना है कि जब मुकदमा महाराष्ट्र में चला, तो नियम भी वहां के लागू होंगे गुजरात के नहीं.


याद रहे कि इसी साल 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में सजा काट रहे 11 मुजरिमों को रिहा कर दिया था. इस फैसले का अपोजिशन नेताओं ने जमकर विरोध किया. गुजरात चुनाव के दौरान भी असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस ने इस मुद्दे को खूब उठाया था. 


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